2. काफ़िर व कुफ्र।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

काफ़िर व कुफ्र । 

             जो लोग अपने हाथों से बनाई गई पत्थर या धातु की मूर्तियों, या जीवित और मृत लोगों, या ब्रह्मांड में किसी भी जीवित या मृत वस्तु की पूजा करते हैं। या फिर वे इन साझेदारों को उस रचयिता (एक ईश्वर) के साथ जोड़ते हैं जिसने पृथ्वी और आकाश और उसमें मौजूद सभी प्राणियों को बनाया। ऐसे लोगों को अरबी में काफिर या मुशरिक कहा जाता है। और इस क्रिया को कुफ्र या शिर्क कहा जाता है। परमेश्वर और उसके स्वर्गदूत इन लोगों को श्राप देते हैं। जो अविश्वासी एक ईश्वर में विश्वास नहीं करते, उनका ईश्वर के न्याय के दिन में कोई मूल्य नहीं होगा।

             अविश्वासी के हर कार्य में शैतान सम्मिलित होता है। शैतान अविश्वासियों के कार्यों को आकर्षक बनाता है। और उसे आशा देता है। और डराता है। एक अविश्वासी हर उस वस्तु की पूजा शुरू कर देता है। जिससे वह डरता है या आशा करता है? भले ही वे मनुष्य से निम्न और हीन हों। जैसे साँप, बिच्छू, बिल्लियाँ, चूहे, शेर, हाथी, बंदर, हवा, पानी, आग, पृथ्वी, पहाड़, चाँद, सूरज, पक्षी, जीवित और मृत लोग और उनके निशानियाँ, देवदूत (फ़रिश्ते), ईश्वर के पैगम्बर और संत आदि। यहां तक ​​की! यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी देवता उपलब्ध हैं।

               कुफ्र वह अन्याय है जो अविश्वासी स्वंम अपने साथ करता है। अल्लाह तआला फ़रमाता है कि वह हर गुनाह को माफ़ कर सकता है, लेकिन कुफ़्र को बिल्कुल भी नहीं। अविश्वासियों के अच्छे कर्मों का भी ईश्वर प्रतिफल नहीं देता। क्योंकि वे ईश्वर के आदेशों और ईश्वर की सुन्नत का पालन नहीं करते। इसलिए, अविश्वासियों को ईश्वर की दया और सहायता पाने का अधिकार नहीं है।


काफिरों में समझ लाने के लिए उदाहरण।

            अल्लाह तआला काफ़िरों को समझाने के लिए कुछ उदाहरण बयान करते हैं। उनके बारे में सोचें तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। परन्तु ये दृष्टान्त केवल उन्हीं को प्रभावित करते हैं जो मनन करते हैं, और विचार करते हैं। वरना दिल कठोर किसके होते हैं. यदि ईश्वर उन लोगों के हाथ में आकाश से लेख भी उतार दे, तो भी वे विश्वास नहीं करेंगे।

ضَرَبَ لَكُمۡ مَّثَلًا مِّنۡ اَنۡفُسِكُمۡ‌ؕ هَلْ لَّكُمۡ مِّنۡ مَّا مَلَـكَتۡ اَيۡمَانُكُمۡ مِّنۡ شُرَكَآءَ فِىۡ مَا رَزَقۡنٰكُمۡ فَاَنۡتُمۡ فِيۡهِ سَوَآءٌ تَخَافُوۡنَهُمۡ كَخِيۡفَتِكُمۡ اَنۡفُسَكُمۡ‌ؕ كَذٰلِكَ نُفَصِّلُ الۡاٰيٰتِ لِقَوۡمٍ يَّعۡقِلُوۡنَ‏ ﴿۲۸﴾۔

[Q-30:28]

             वह (भगवान) आपको आपके ही बीच से एक उदाहरण देता है! कि जो जीविका हमने तुम्हें दी है, क्या उसमें तुम्हारे दाहिने हाथ (अर्थात तुम्हारे दास या तुम्हारे साथ काम करने वाले मित्र) बराबर-बराबर हिस्सेदार हैं। और क्या आप उनसे उसी तरह डरते हैं जैसे आप अपने परिवार से डरते हैं?  हम इसी तरह बुद्धिमानों के लिए अपनी आयतों को विस्तार से समझाते हैं। (28).

يٰۤـاَيُّهَا النَّاسُ ضُرِبَ مَثَلٌ فَاسۡتَمِعُوۡا لَهٗ ؕ اِنَّ الَّذِيۡنَ تَدۡعُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ لَنۡ يَّخۡلُقُوۡا ذُبَابًا وَّلَوِ اجۡتَمَعُوۡا لَهٗ‌ ؕ وَاِنۡ يَّسۡلُبۡهُمُ الذُّبَابُ شَيۡــًٔـا لَّا يَسۡتَـنۡـقِذُوۡهُ مِنۡهُ‌ ؕ ضَعُفَ الطَّالِبُ وَالۡمَطۡلُوۡبُ‏ ﴿۷۳﴾  مَا قَدَرُوا اللّٰهَ حَقَّ قَدۡرِهٖؕ اِنَّ اللّٰهَ لَقَوِىٌّ عَزِيۡزٌ‏ ﴿۷۴﴾۔

[Q-22:73-74]

            हे लोगो, एक उदाहरण ध्यान से सुनो! जिन लोगों को तुम अल्लाह के सिवाए पुकारते हो, वे एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकते, चाहे वे सब इकट्ठे हो जाएँ, और यदि मक्खी उनमें से कुछ (अर्थात् अपना भोजन) लेकर भाग जाए। फिर ये उस चीज़ को मक्खी से मुक्त नहीं करा सकते. तो जो माँगते हैं वे भी कमज़ोर हैं, और जिनसे माँगते हैं वे भी कमज़ोर हैं। (734) उन्होंने उस ईश्वर की स्तुति नहीं की जिसके वे हकदार हैं। सचमुच, ईश्वर शक्तिशाली और महान है।

ضَرَبَ اللّٰهُ مَثَلًا رَّجُلًا فِيۡهِ شُرَكَآءُ مُتَشٰكِسُوۡنَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِّرَجُلٍ ؕ هَلۡ يَسۡتَوِيٰنِ مَثَلًا ‌ؕ اَلۡحَمۡدُ لِلّٰهِ ‌ ۚ بَلۡ اَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُوۡنَ‏ ﴿۲۹﴾۔

[Q-39:29]

              फिर भगवान एक उदाहरण से समझाते हैं।  एक गुलाम आदमी जिसके कई परस्पर विरोधी मालिक हैं। और वह दास जिसका एक ही स्वामी हो।  क्या वे दोनों बराबर हो सकते हैं? (नहीं) सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, परन्तु अक्सर ये लोग नहीं जानते। (29)

وَالَّذِيۡنَ يَدۡعُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ لَا يَخۡلُقُوۡنَ شَيۡــًٔا وَّهُمۡ يُخۡلَقُوۡنَؕ‏ ﴿۲۰﴾  اَمۡوَاتٌ غَيۡرُ اَحۡيَآءٍ‌ ۚ وَمَا يَشۡعُرُوۡنَ اَيَّانَ يُبۡعَثُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾  اِلٰهُكُمۡ اِلٰهٌ وَّاحِدٌ ۚ ﴿۲۲﴾۔

[Q-16:20-22]

            और जिनको वे ईश्वर के अतिरिक्त पुकारते हैं, वे कुछ भी उत्पन्न नहीं करते। बल्कि, वे स्वयं निर्मित हैं। (20) वे जीवित नहीं बल्कि मृत हैं। और वे नहीं जानते कि वे कब पुनर्जीवित होंगे। (21) तुम्हारा ईश्वर एक ईश्वर है. (22)

يَدۡعُوۡا مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مَا لَا يَضُرُّهٗ وَمَا لَا يَنۡفَعُهٗ ‌ؕ ذٰ لِكَ هُوَ الضَّلٰلُ الۡبَعِيۡدُ‌ ۚ‏ ﴿۱۲﴾  يَدۡعُوۡا لَمَنۡ ضَرُّهٗۤ اَقۡرَبُ مِنۡ نَّـفۡعِهٖ‌ؕ لَبِئۡسَ الۡمَوۡلٰى وَلَبِئۡسَ الۡعَشِيۡرُ‏ ﴿۱۳﴾۔

[Q-22:12-13]

             वे परमेश्वर के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी पुकारते हैं। जो उन्हें न तो नुकसान पहुंचा सकते है और न ही फायदा पहुंचा सकता है. यह प्रथम श्रेणी का भ्रम है। (12) ऐसे को बुलाने से लाभ की अपेक्षा हानि अधिक होती है, ऐसा संरक्षक और ऐसा साथी दोनों ही बुरे होते हैं। (13)

قُلۡ اَ تَعۡبُدُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مَا لَا يَمۡلِكُ لَـكُمۡ ضَرًّا وَّلَا نَفۡعًا ‌ؕ وَاللّٰهُ هُوَ السَّمِيۡعُ الۡعَلِيۡمُ‏ ﴿۷۶﴾۔

[Q-05:76]

             कहो, क्या तुम ईश्वर को छोड़कर किसी अन्य की पूजा करते हो? जिससे न तो आपको कोई नुकसान हो सकता है और न ही कोई फायदा। और ईश्वर सुनने वाला, जानने वाला है।


इबलीस का अस्तित्व लोगों की परीक्षा।

            ख़ुदा ने इबलीस को शापित घोषित कर दिया ताकि इंसानों और जिन्नों की जाँच करें। और उसे क़ियामत के दिन तक परीक्षा का साधन बना दिया, ताकि ईश्वर ईमानवालों और अविश्वासियों के बीच अंतर कर सके। यह घटना आलम-अरवाह में घटी। जब शैतान ने आदम को सज्दा करने से इन्कार कर दिया। तब शैतान ने मनुष्य पर अधिकार माँगा, जिसे परमेश्वर ने उसके लिये स्वीकार कर लिया। क्योंकि अल्लाह अच्छे और बुरे लोगों की परीक्षा लेना चाहता था। और क्योंकि शैतान ने मनुष्य को एक बदतर प्राणी समझा, इसीलिए उसने भगवान के सामने संदेह व्यक्त किया कि, , , ,

وَقَالَ لَاَ تَّخِذَنَّ مِنۡ عِبَادِكَ نَصِيۡبًا مَّفۡرُوۡضًا ۙ‏ ﴿۱۱۸﴾  وَّلَاُضِلَّـنَّهُمۡ وَلَاُمَنِّيَنَّهُمۡ وَلَاٰمُرَنَّهُمۡ فَلَيُبَـتِّكُنَّ اٰذَانَ الۡاَنۡعَامِ وَلَاٰمُرَنَّهُمۡ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلۡقَ اللّٰهِ‌ؕ وَمَنۡ يَّتَّخِذِ الشَّيۡطٰنَ وَلِيًّا مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ فَقَدۡ خَسِرَ خُسۡرَانًا مُّبِيۡنًا ؕ‏ ﴿۱۱۹﴾  يَعِدُهُمۡ وَيُمَنِّيۡهِمۡ‌ ؕ وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيۡـطٰنُ اِلَّا غُرُوۡرًا‏ ﴿۱۲۰﴾  اُولٰٓٮِٕكَ مَاۡوٰٮهُمۡ جَهَـنَّمُ﯀ وَلَا يَجِدُوۡنَ عَنۡهَا مَحِيۡصًا‏ ﴿۱۲۱﴾۔

[Q-04:117-121]

             और उसने (शैतान ने) कहा था: मैं तेरे बन्दों से अनिवार्य हिस्सा लूँगा। (118). और यदि मैं उन्हें भटकाऊँ नहीं, और उन्हें आशा भी न दूं, और यदि मैं उन्हें आज्ञा भी न दूं, तो भी वे (मनुष्य) पशुओं के कान अवश्य फाड़ डालेंगे। और यदि मैं उन्हें आज्ञा न भी दूं, तो भी वे (मनुष्य) अल्लाह की रचना को अवश्य बदल डालेंगे। और जिसने अल्लाह को छोड़कर शैतान को मित्र बना लिया, वह निश्चय ही घाटे में पड़ा। (119) वह वादे करता है, और आशा देता है, और शैतान के वादे महज़ धोखा हैं। (120) ऐसे लोगों का ठिकाना नरक है. और उन्हें इस नर्क से मुक्ति नहीं मिलेगी. (121).

وَلَقَدۡ صَدَّقَ عَلَيۡهِمۡ اِبۡلِيۡسُ ظَنَّهٗ فَاتَّبَعُوۡهُ اِلَّا فَرِيۡقًا مِّنَ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ‏ ﴿۲۰﴾  وَمَا كَانَ لَهٗ عَلَيۡهِمۡ مِّنۡ سُلۡطٰنٍ اِلَّا لِنَعۡلَمَ مَنۡ يُّـؤۡمِنُ بِالۡاٰخِرَةِ مِمَّنۡ هُوَ مِنۡهَا فِىۡ شَكٍّ ؕ وَ رَبُّكَ عَلٰى كُلِّ شَىۡءٍ حَفِيۡظٌ ﴿۲۱﴾۔

[Q-34:20-21]

           वास्तव में, इबलीस का उनके बारे में संदेह सही था, इसलिए विश्वासियों के एक समूह को छोड़कर, उन्होंने उसका अनुसरण किया। (20) और उन पर उसका कोई अधिकार नहीं था, सिवाय इसके कि हम जान लें कि आख़िरत पर कौन ईमान रखता है, और कौन संदेह में है। और तुम्हारा रब हर चीज़ का पालनहार है। (21)

          जो लोग परीक्षा में असफल होते हैं वे वे लोग हैं जो आख़िरत पर विश्वास नहीं रखते।  यही वह इम्तिहान है जो क़ियामत के दिन मोमिनों और काफ़िरों को उनके कर्मों की वजह से अलग-अलग लाइनों में खड़ा कर देगा।

وَمَنۡ يَّعۡشُ عَنۡ ذِكۡرِ الرَّحۡمٰنِ نُقَيِّضۡ لَهٗ شَيۡطٰنًا فَهُوَ لَهٗ قَرِيۡنٌ‏ ﴿۳۶﴾  وَاِنَّهُمۡ لَيَصُدُّوۡنَهُمۡ عَنِ السَّبِيۡلِ وَيَحۡسَبُوۡنَ اَنَّهُمۡ مُّهۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۳۷﴾۔

[Q-43:36-37]

             और जो दयालु ईश्वर के ज़िक्र से बचेगा, हम उस पर शैतान को नियुक्त कर देंगे। तो वह उसका साथी होगा. (364) और वास्तव में वे (शैतान) उन्हें मार्ग से भटका देते हैं। और वे स्वयं को निर्देशित मानते हैं। (37)

وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اَوۡلِيٰٓـــُٔهُمُ الطَّاغُوۡتُۙ يُخۡرِجُوۡنَهُمۡ مِّنَ النُّوۡرِ اِلَى الظُّلُمٰتِ‌ؕ اُولٰٓٮِٕكَ اَصۡحٰبُ النَّارِ‌‌ۚ هُمۡ فِيۡهَا خٰلِدُوۡنَ‏ ﴿۲۵۷﴾۔

[Q-02:257]

            और जो लोग इनकार करते हैं, उनके संरक्षक ज़ालिम हैं, वे उन्हें प्रकाश से निकाल देते हैं और अंधकार की ओर ले जाते हैं। ये लोग नरक के लोग हैं जो सदैव आग में रहेंगे। (257).

وَقَيَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَآءَ فَزَيَّنُوۡا لَهُمۡ مَّا بَيۡنَ اَيۡدِيۡهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَيۡهِمُ الۡقَوۡلُ فِىۡۤ اُمَمٍ قَدۡ خَلَتۡ مِنۡ قَبۡلِهِمۡ مِّنَ الۡجِنِّ وَالۡاِنۡسِ‌ۚ اِنَّهُمۡ كَانُوۡا خٰسِرِيۡنَ‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-41:25]

            और हमने उनपर शैतान साथियों को नियुक्त किया, और उन्होंने उन्हें उनके अगले और पिछले बुरे कर्मों को अलंकृत कर दिखाया, और उन पर सत्य का वही आदेश आया, जो मनुष्यों और उनके जैसे जिन्नों के पहले (अविश्वासी) राष्ट्रों पर आया था। सचमुच वे घाटे में रहेंगे। (25).


काफ़िरों (अविश्वासियों) को ईश्वर की चेतावनी।

            बहुदेववादियों का यह भी मानना ​​है कि प्रारंभ में केवल एक ही शक्ति थी। इस ब्रह्माण्ड की रचना किसने की. उसने पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, तारे, ग्रह और अन्य सभी प्राणियों की रचना की। अब प्रश्न यह उठता है कि जिसने सब कुछ बनाया, वह सृष्टिकर्ता है या रचा हुआ प्राणी सृष्टिकर्ता है? क्या यह विचारणीय विषय नहीं है? अल्लाह तआला काफ़िरों को समझाने के लिए कुछ उदाहरण पेश करते हैं। यदि वे विचार करें।

قُلِ ادۡعُوا الَّذِيۡنَ زَعَمۡتُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰهِۚ لَا يَمۡلِكُوۡنَ مِثۡقَالَ ذَرَّةٍ فِى السَّمٰوٰتِ وَلَا فِى الۡاَرۡضِ وَمَا لَهُمۡ فِيۡهِمَا مِنۡ شِرۡكٍ وَّمَا لَهٗ مِنۡهُمۡ مِّنۡ ظَهِيۡرٍ‏ ﴿۲۲﴾۔

[Q-34:22]

             कहो: उन लोगों को बुलाओ जिन्हें तुम ईश्वर के अलावा मानते हो। उनके पास आसमानों और ज़मीन में रत्ती भर भी चीज़ नहीं है। और उनमें उनका कोई हिस्सा नहीं है। और उनमें से कोई भी ईश्वर का सहायक नहीं है। (22).

وَقَالَ اللّٰهُ لَا تَـتَّخِذُوۡۤا اِلٰهَيۡنِ اثۡنَيۡنِ‌ۚ اِنَّمَا هُوَ اِلٰـهٌ وَّاحِدٌ‌ ۚ فَاِيَّاىَ فَارۡهَبُوۡنِ‏ ﴿۵۱﴾  وَلَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَ الۡاَرۡضِ وَلَهُ الدِّيۡنُ وَاصِبًا‌ ؕ اَفَغَيۡرَ اللّٰهِ تَـتَّـقُوۡنَ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-16:51-52]

            और परमेश्वर ने कहा, दो दो परमेश्वर न बनाना (अर्थात एक से अधिक परमेश्वर न बनाना), क्योंकि परमेश्वर एक है। इसलिए मुझसे डरो (51)। और जो कुछ आकाशों और धरती में है वह सब उसी का है, और उसका धर्म स्थापित है। क्या तुम अब भी अल्लाह के सिवा किसी और से डरोगे? (52).

وَمِنۡ اٰيٰتِهِ الَّيۡلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمۡسُ وَالۡقَمَرُ‌ؕ لَا تَسۡجُدُوۡا لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَاسۡجُدُوۡا لِلّٰهِ الَّذِىۡ خَلَقَهُنَّ اِنۡ كُنۡتُمۡ اِيَّاهُ تَعۡبُدُوۡنَ‏ ﴿۳۷﴾۔

[Q-41:37]

              और उसकी निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं, तुम सूरज और चाँद की इबादत न करो, बल्कि उस ख़ुदा की इबादत करो जिसने उन्हें पैदा किया। यदि आप वास्तविक रचयिता की पूजा करना चाहते हैं। (37)

اَمِ اتَّخَذُوۡۤا اٰلِهَةً مِّنَ الۡاَرۡضِ هُمۡ يُنۡشِرُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾  لَوۡ كَانَ فِيۡهِمَاۤ اٰلِهَةٌ اِلَّا اللّٰهُ لَـفَسَدَتَا‌ۚ فَسُبۡحٰنَ اللّٰهِ رَبِّ الۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُوۡنَ‏ ﴿۲۲﴾۔

[Q-21:21-22]

           या उन्होंने पृय्वी से देवता बनाकर खड़े किए हैं। (21) यदि अल्लाह के अतिरिक्त अन्य पूज्य होते तो वे धरती और आकाश को नष्ट कर देते (अर्थात प्रत्येक देव स्वयं को स्थापित करने के लिए संघर्ष करता है)। तो सिंहासन का स्वामी, परमेश्वर इन लोगों के वर्णन से शुद्ध है। (22).

وَاتَّخَذُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اٰلِهَةً لَّا يَخۡلُقُوۡنَ شَيۡـًٔـا وَّهُمۡ يُخۡلَقُوۡنَ وَلَا يَمۡلِكُوۡنَ لِاَنۡفُسِهِمۡ ضَرًّا وَّلَا نَفۡعًا وَّلَا يَمۡلِكُوۡنَ مَوۡتًا وَّلَا حَيٰوةً وَّلَا نُشُوۡرًا‏ ﴿۳﴾۔

[Q-25:03]

            और उन्होंने एक परमेश्वर को छोड़ दूसरे देवताओं को बना लिया, जबकि उनके देवता कुछ रच नहीं सकते, अपितु वे स्वंम रचे गए हैं। और उनमें स्वयं को भी हानि या लाभ पहुंचाने की शक्ति नहीं होती। और उन्हें न मौत पर, न ज़िंदगी पर और न क़ियामत के दिन ज़िन्दा किये जाने पर इख्तियार है।(3)

اَلشَّيۡطٰنُ يَعِدُكُمُ الۡـفَقۡرَ وَيَاۡمُرُكُمۡ بِالۡفَحۡشَآءِ‌ ۚ وَاللّٰهُ يَعِدُكُمۡ مَّغۡفِرَةً مِّنۡهُ وَفَضۡلًا ؕ وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِيۡمٌۚ  ۙ﴿۲۶۸﴾۔

[Q-02:268]

              शैतान आपको गरीबी से डराता है, और आपको अनैतिक होने का आदेश देता है। और ईश्वर आपको अपनी क्षमा और अनुग्रह का वचन देता है। और अल्लाह व्यापक, सर्वज्ञ है। (268).


काफ़िर के लिए मोक्ष नहीं।

            एक सरल उदाहरण! यदि कोई पुत्र अपने पिता को पिता न कहकर दूसरों को पिता कहे, तो उसकी कीमत अपने पिता के सामने मच्छर के बराबर भी नहीं है। वह जब चाहे उन्हें मिटा सकता है। या उनके जैसे अनगिनत पैदा करें. तो क्या वह पिता उस नालायक बेटे को माफ़ कर सकता है? नहीं!

اِنَّ اللّٰهَ لَا يَغۡفِرُ اَنۡ يُّشۡرَكَ بِهٖ وَيَغۡفِرُ مَا دُوۡنَ ذٰ لِكَ لِمَنۡ يَّشَآءُ‌ ۚ وَمَنۡ يُّشۡرِكۡ بِاللّٰهِ فَقَدِ افۡتَـرٰۤى اِثۡمًا عَظِيۡمًا‏ ﴿۴۸﴾۔

[Q-04:48, 116]

             निस्संदेह, अल्लाह उस व्यक्ति को क्षमा नहीं करता जो उसका साझीदार बनाता है, इसके अलावा वह जिसे चाहेगा क्षमा कर देगा। और जो कोई किसी चीज़ को ईश्वर के साथ साझीदार बनाएगा। सचमुच बहुत बड़ा पाप किया। (48).

وَاللّٰهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ اَثِيۡمٍ‏ ﴿۲۷۶﴾۔

[Q-02:276]

            और परमेश्वर अविश्वासी (काफिर) पापियों को पसन्द नहीं करता। (276).

 

مَاۤ اُرِيۡدُ مِنۡهُمۡ مِّنۡ رِّزۡقٍ وَّمَاۤ اُرِيۡدُ اَنۡ يُّطۡعِمُوۡنِ‏ ﴿۵۷﴾  اِنَّ اللّٰهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الۡقُوَّةِ الۡمَتِيۡنُ‏ ﴿۵۸﴾۔

[Q-51:57-58]

           अल्लाह फ़रमाता है कि मैं न तो उनसे रोज़ी चाहता हूँ और न चाहता हूँ कि वे मुझे खिलाएँ। निस्संदेह, अल्लाह ही पालनहार और समस्त शक्तियों का स्वामी है। (58).


काफ़िरों के अच्छे कर्म व्यर्थ हो जायेंगे।

            बहुत से अविश्वासी लोग यह कहते हुए मिल जायेंगे. कि सबसे बड़ा धर्म मानवता है. कुछ लोग कहते हैं कि प्रकृति ही सब कुछ है। ईसाइयों के एक बड़े वर्ग ने यीशु, माता मरियम और ईश्वर की कल्पना एक परिवार के रूप में की है। हिंदू धर्म के अनुसार 33 प्रकार या 33 करोड़ देवी-देवता हैं, इसके अलावा कई धर्मों में चांद, सूरज, सितारे, मूर्तियां और दरगाह आदि शिर्क का स्रोत हैं।

            हे लोगो, तुम रोटी खाते हो, घास नहीं। आप जरा सोचो! क्या इतने सारे भगवान हो सकते हैं? उपवाक्य के बिना नहीं. केवल एक ही सच्चा ईश्वर है। जिसने सारी पृय्वी और आकाश और उन में सब प्राणियों को उत्पन्न किया। और जो दिखाई नहीं देता, क्योंकि हमारी आंखें उसे देख नहीं पातीं, जबकि वह सब आंखें देख सकता है। अल्लाह सर्वशक्तिमान कहते हैं कि यदि ब्रह्मांड में एक से अधिक भगवान होते। तो वे अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए आपस में लड़ते हैं और धरती और आकाश को नष्ट कर देते हैं।

           तो यह स्पष्ट है कि! जब कोई अविश्वासी कोई अच्छा काम करता है, तो उसके अच्छे कर्म उसी की ओर निर्देशित होते हैं जिसकी वह पूजा करता है। ऐसे में उसके दिल और दिमाग में असली भगवान की छवि नहीं होती. अंततः वे सभी अच्छे कर्म व्यर्थ हो जाते हैं।

اَمِ اتَّخَذُوۡۤا اٰلِهَةً مِّنَ الۡاَرۡضِ هُمۡ يُنۡشِرُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾  لَوۡ كَانَ فِيۡهِمَاۤ اٰلِهَةٌ اِلَّا اللّٰهُ لَـفَسَدَتَا‌ۚ فَسُبۡحٰنَ اللّٰهِ رَبِّ الۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُوۡنَ‏ ﴿۲۲﴾۔

[Q-21:21-22]

           या उन्होंने पृय्वी से देवता बनाकर खड़े किए हैं। (21) यदि ईश्वर के अलावा देवता होते तो उन्होंने पृथ्वी और आकाश को नष्ट कर दिया होता (अर्थात प्रत्येक देवता ने स्वयं को स्थापित करने के लिए संघर्ष किया होता)। अतः सिंहासन का स्वामी परमेश्वर है। और ये लोग जो वर्णन करते हैं वह उससे कहीं अधिक शुद्ध है। (22).

اَلَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا وَصَدُّوۡا عَنۡ سَبِيۡلِ اللّٰهِ اَضَلَّ اَعۡمَالَهُمۡ‏ ﴿۱﴾ ذٰلِكَ بِاَنَّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا اتَّبَعُوا الۡبَاطِلَؕ ﴿۳﴾۔

[Q-47:01&03]

          जिन लोगों ने (परमेश्वर का) इनकार किया और (अन्य लोगों को) ईश्वर के मार्ग से रोका। भगवान ने उनके कर्मों को नष्ट कर दिया. (1) इसका कारण यह है कि काफ़िरों ने झूठ का अनुसरण किया। (3)

وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا فَتَعۡسًا لَّهُمۡ وَاَضَلَّ اَعۡمَالَهُمۡ‏ ﴿۸﴾  ذٰلِكَ بِاَنَّهُمۡ كَرِهُوۡا مَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰهُ فَاَحۡبَطَ اَعۡمَالَهُمۡ‏ ﴿۹﴾۔

[Q-47:8-9]

          और जो लोग इनकार करते रहे, उनके लिए विपत्ति है और उनके कर्म व्यर्थ हो गए (8) क्योंकि उन्होंने उन आयतों को झुठलाया। जिसे ईश्वर ने प्रकट किया। इसलिये उसने उनके कर्मों को नष्ट कर दिया। (9)

ذٰلِكَ بِاَنَّهُمُ اتَّبَعُوۡا مَاۤ اَسۡخَطَ اللّٰهَ وَكَرِهُوۡا رِضۡوَانَهٗ فَاَحۡبَطَ اَعۡمَالَهُمۡ‏ ﴿۲۸﴾۔

[Q-47:28]

          इसका कारण यह है कि उन्होंने उस बात का अनुसरण किया जो परमेश्वर को अप्रसन्न करती है। और परमेश्वर की प्रसन्नता को नापसंद किया। इसलिये उसने उनके कर्मों को नष्ट कर दिया। (28)

وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اَعۡمَالُهُمۡ كَسَرَابٍۢ بِقِيۡعَةٍ يَّحۡسَبُهُ الظَّمۡاٰنُ مَآءً ؕ حَتّٰۤى اِذَا جَآءَهٗ لَمۡ يَجِدۡهُ شَيۡــًٔـا وَّ وَجَدَ اللّٰهَ عِنۡدَهٗ فَوَفّٰٮهُ حِسَابَهٗ‌ ؕ وَاللّٰهُ سَرِيۡعُ الۡحِسَابِ ۙ‏ ﴿۳۹﴾۔

[Q-24:39]

            काफ़िरों के कर्म रेगिस्तान में मृगतृष्णा के समान हैं, जिससे प्यासे को पानी का भ्रम हो जाता है। जब वह उसके पास आया, तो उसे कुछ नहीं मिला, परन्तु (हिसाब लेने के लिए) उसने परमेश्वर  को अपने सामने पाया। तो परमेश्वर ने उसका हिसाब चुका दिया। और परमेश्वर शीघ्र ही हिसाब लेगा। (39)

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