कुर्आन की शिक्षा

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             आऔ, कुर्आन की शिक्षा की बात करें। कुर्आन को समझने की कोशिश करें। और कुर्आन को समझाने की कोशिश करें। अपने प्रश्नों के उत्तर [भले ही वह धार्मिक हों, समाजिक हों या विज्ञानी हों] कुर्आन से प्राप्त करें, साथ ही क़ुर्आन के कुछ सवालों के जवाब देने के लिए स्वंम को तैयार करें। इंसान बनने और इंसान होने का ज्ञान कुर्आन से प्राप्त करें। क़ुरान मे जीवन ढूँडे, और जीवन मे कुर्आन ढूँडे।

            अगर एक ईश्वर की बात करते हैं तो उसका रास्ता कुर्आन से ढूँडे। कुर्आन स्वयं ईश्वर रचित पवित्र ग्रंथ कैसे है यह उत्तर स्वयं कुर्आन से प्राप्त करें। संसार मे उपलब्ध पवित्र ग्रंथों को कुर्आन के प्रकाश मे पढ़ने और समझने की कोशिश करें।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

कुर्आन।

ذٰ لِكَ الۡڪِتٰبُ لَا رَيۡبَ ۚ فِيۡهِ ۚ هُدًى لِّلۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ۩ الَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡغَيۡبِ وَ يُقِيۡمُوۡنَ الصَّلٰوةَ وَمِمَّا رَزَقۡنٰهُمۡ يُنۡفِقُوۡنَۙ‏ ﴿۳﴾  وَالَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِمَۤا اُنۡزِلَ اِلَيۡكَ وَمَاۤ اُنۡزِلَ مِنۡ قَبۡلِكَۚ وَبِالۡاٰخِرَةِ هُمۡ يُوۡقِنُوۡنَؕ‏ ۩  اُولٰٓٮِٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنۡ رَّبِّهِمۡ‌  وَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُفۡلِحُوۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-02:2-5]

ये पुस्तक (कुर्आन) है, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह उन लोगों को सत्य मार्ग दर्शाती है।

  •               जो (अल्लाहसे) डरते हैं। और जो ग़ैब [परोक्ष] पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं। और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं।
  •               जो उस पुस्तक (कुर्आन) पर जो तुझ पर उतारी गई है, और उन पुस्तकों पर भी, जो तुझ से पहले पेग़म्बरों  पर उतारी गई थीं, विश्वास करते हैं। और वे न्याय के दिन (प्रलय के पश्चात होने वाले हिसाब के दिन) में विश्वास करते हैं।

यही लोग अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं और यही सफल होने वाले हैं। “2-5”


الۤرٰ ࣞ كِتٰبٌ اَنۡزَلۡنٰهُ اِلَيۡكَ لِـتُخۡرِجَ النَّاسَ مِنَ الظُّلُمٰتِ اِلَى النُّوۡرِ ۙ  بِاِذۡنِ رَبِّهِمۡ اِلٰى صِرَاطِ الۡعَزِيۡزِ الۡحَمِيۡدِۙ‏ ۩  اللّٰهِ الَّذِىۡ لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ ۩ ۔

[Q-14:1-2]

            अलिफ़, लाम, रा। हमने यह पुस्तक आप पर इसलिये अवतरित की है कि पूर्ण, शक्तिशाली और प्रशंसनीय प्रभु के आदेश से इस पुस्तक की सहायता से लोगों को अन्धकार से प्रकाश की ओर अर्थात् ईश्वर के मार्ग पर लाया जा सके। उस भगवान के रास्ते पर! कि, जो कुछ आकाशों और धरती में है वह् सब का रचयिता है।

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कुर्आन और आस्तिक के बीच संबंध।

وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَاٰمَنُوۡا بِمَا نُزِّلَ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّهُوَ الۡحَقُّ مِنۡ رَّبِّهِمۡ‌ۙ كَفَّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّاٰتِهِمۡ وَاَصۡلَحَ بَالَهُمۡ‏ ۩ ۔

[Q-47:02]

              और जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म किए और जो (कुरान) मुहम्मद पर अवतरित हुआ उस पर ईमान लाए। यद्यपि यह उनके प्रभु की ओर से सत्य है, तो ईश्वर उनके पापों को मिटा देगा और उनकी स्थिति को ठीक कर देगा।


وَالَّذِىۡ جَآءَ بِالصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهٖۤ‌ اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡمُتَّقُوۡنَ‏ ۩  لَهُمۡ مَّا يَشَآءُوۡنَ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ‌ ؕ ذٰ لِكَ جَزٰٓؤُ الۡمُحۡسِنِيۡنَ ۖۚ‏ ۩  لِيُكَفِّرَ اللّٰهُ عَنۡهُمۡ اَسۡوَاَ الَّذِىۡ عَمِلُوۡا وَيَجۡزِيَهُمۡ اَجۡرَهُمۡ بِاَحۡسَنِ الَّذِىۡ كَانُوۡا يَعۡمَلُوۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-39:33-35]

             और जो (मुहम्मद ﷺ) सत्य अर्थात् क़ुरआन लाए, और जो लोग इस सत्य अर्थात् क़ुरान की पुष्टि करते हैं, वही सच्चे ईमान वाले हैं। ऐसे लोगों के लिए उनके रब का प्रतिफल ऐसा है कि वे जो कुछ चाहेंगे वह हो जाएगा। और अल्लाह उनसे उन बुराइयों (पापों) को दूर कर देगा। जो उन्होंने की थी, और अल्लाह उन्हें उनके उन अच्छे कामों का बदला देगा। जो वे करते थे।


فَاِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ الۡمَوۡتٰى وَلَا تُسۡمِعُ الصُّمَّ الدُّعَآءَ اِذَا وَلَّوۡا مُدۡبِرِيۡنَ‏ ۩  وَمَاۤ اَنۡتَ بِهٰدِ الۡعُمۡىِ عَنۡ ضَلٰلَتِهِمۡ‌ؕ اِنۡ تُسۡمِعُ اِلَّا مَنۡ يُّؤۡمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-30:52-53]

              निस्संदेह, तुम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मुर्दों से बात नहीं कर सकते, और न तुम बहरों से बात कर सकते हो, जबकि वे पीठ फेर लें। और आप (आँखों वाले) अन्धों को उनके भटके हुए मार्ग से सीधा मार्ग नहीं दिखा सकते। आप इन्हें केवल उन लोगों को सुना सकते हैं जो हमारी आयतों पर विश्वास करते हैं। और फिर वे ही मुसलमान हैं।


 وَمَنۡ اَظۡلَمُ مِمَّنۡ ذُكِّرَ بِاٰيٰتِ رَبِّهٖ فَاَعۡرَضَ عَنۡهَا وَنَسِىَ مَا قَدَّمَتۡ يَدٰهُ‌ ؕ اِنَّا جَعَلۡنَا عَلٰى قُلُوۡبِهِمۡ اَكِنَّةً اَنۡ يَّفۡقَهُوۡهُ وَفِىۡۤ اٰذَانِهِمۡ وَقۡرًا‌ ؕ وَاِنۡ تَدۡعُهُمۡ اِلَى الۡهُدٰى فَلَنۡ يَّهۡتَدُوۡۤا اِذًا اَبَدًا‏ ۩ ۔

[Q-18:57]

            और उससे अधिक क्रूर कौन होगा? कि उसे अपने रब की आयतों से मार्गदर्शन की दावत दी जाये। तौभी वह उन से मुंह फेर ले, और जो कुछ उसके हाथों ने भेजा है उसे भूल जाए। वास्तव में, हमने उनके कानों में एक बोझ (बहरापन) डाल दिया है और उनके दिलों पर पर्दा डाल दिया है, ताकि वे इस [कुरान] को न समझ सकें। और यदि आप उन्हें मार्गदर्शन के लिए भी बुलाएँगे, तब भी वे कभी मार्ग नहीं पाएँगे।

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पेगम्बर और पवित्र पुस्तक।

وَبِالۡحَـقِّ اَنۡزَلۡنٰهُ وَبِالۡحَـقِّ نَزَلَ‌ ؕ وَمَاۤ اَرۡسَلۡنٰكَ اِلَّا مُبَشِّرًا وَّنَذِيۡرًا ‌ۘ‏ ۩ ۔

[Q-17:105]

           और हमने यह क़ुरआन सत्य के साथ अवतरित किया है और यह सत्य के साथ अवतरित हुआ है। और [हे मुहम्मद] हमने तुम्हें केवल शुभ सूचना देने वाला और सचेत करने वाला बनाकर भेजा है।


وَاَنۡ اَتۡلُوَا الۡقُرۡاٰنَ‌ۚ فَمَنِ اهۡتَدٰى فَاِنَّمَا يَهۡتَدِىۡ لِنَفۡسِهٖ‌ۚ وَمَنۡ ضَلَّ فَقُلۡ اِنَّمَاۤ اَنَا مِنَ الۡمُنۡذِرِيۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-27:92]

               और ये भी कहो! कुरान पढ़ें. इसलिए जो कोई सही रास्ता चुनता है, वह उसे अपने फायदे के लिए चुनता है। और जो कोई भटक जाए तो कह दो कि मैं तो केवल सावधान करने वालों में से हूँ।

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दूत (रसूल) का उद्देश्य।

وَمَا نُرۡسِلُ الۡمُرۡسَلِيۡنَ اِلَّا مُبَشِّرِيۡنَ وَمُنۡذِرِيۡنَ‌ ۚ وَيُجَادِلُ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا بِالۡبَاطِلِ لِـيُدۡحِضُوۡا بِهِ الۡحَـقَّ‌ وَاتَّخَذُوۡۤا اٰيٰتِىۡ وَمَاۤ اُنۡذِرُوۡا هُزُوًا‏ ۩ ۔

[Q-18:56] 

           तथा हम रसूलों को केवल शुभ सूचना देने वाले और सावधान करने वाले बनाकर भेजते हैं। और जो काफ़िर हैं, असत्य के सहारे झगड़ते हैं, ताकि सत्य को नष्ट कर दिया जाए। और उन्होंने हमारी आयतों का मज़ाक उड़ाया है, जिससे उन्हें डराया जाता है।

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साम्राज्य। 

اِنَّ اللّٰهَ لَهٗ مُلۡكُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ؕ يُحۡىٖ وَيُمِيۡتُ‌ؕ وَمَا لَـكُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مِنۡ وَّلِىٍّ وَّلَا نَصِيۡرٍ‏۩ ۔

[Q-9:116]

            निस्संदेह! सारी धरती और आकाश में अल्लाह का राज्य है। वह जीवन और मृत्यु का दाता है, और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई मित्र या सहायक नहीं।


اَلرَّحۡمٰنُ عَلَى الۡعَرۡشِ اسۡتَوٰى‏ ۩  لَهٗ مَا فِى السَّمٰوٰتِ وَمَا فِى الۡاَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَمَا تَحۡتَ الثَّرٰى‏ ۩  وَاِنۡ تَجۡهَرۡ بِالۡقَوۡلِ فَاِنَّهٗ يَعۡلَمُ السِّرَّ وَاَخۡفٰى‏ ۩  اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ‌ؕ لَـهُ الۡاَسۡمَآءُ الۡحُسۡنٰى‏ ۩ ۔

[Q-20:5-8]

             रहमान! वह जो सिंहासन पर स्थापित है। वह रचयिता है. जो कुछ धरती और आकाशों में है, और जो कुछ उनके बीच है, और जो कुछ पृथ्वी की गहराइयों में है। और यदि तुम चिल्लाकर बात करते हो, तो जान लो! वह छुपे हुए रहस्यों और सबसे छुपी हुई बातों को भी जानता है। कोई पूज्य नहीं, लेकिन सिर्फ अल्लाह। उनके (सभी) नाम अच्छे हैं.

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एक ही पूज्य। जिसका कोई साथी नहीं।

قُلۡ يٰۤاَيُّهَا النَّاسُ اِنِّىۡ رَسُوۡلُ اللّٰهِ اِلَيۡكُمۡ جَمِيۡعَاْ ۨالَّذِىۡ لَهٗ مُلۡكُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ يُحۡىٖ وَيُمِيۡتُ‌ فَاٰمِنُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهِ النَّبِىِّ الۡاُمِّىِّ الَّذِىۡ يُؤۡمِنُ بِاللّٰهِ وَكَلِمٰتِهٖ وَاتَّبِعُوۡهُ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُوۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-07:158]

            कहो ऐ मुहम्मद! मैं ईश्वर द्वारा आपके पास भेजा गया एक दूत हूं। जो सारी धरती और आकाश का स्वामी है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वही जीवन देता है और वही मृत्यु लाता है। अल्लाह और उसके रसूल उम्मी पर विश्वास करो, जो स्वयं अल्लाह और उसके सभी शब्दों पर विश्वास करते हैं। और उनकी आज्ञा मानो, ताकि तुम मार्ग पाओ।


غَافِرِ الذَّنۡۢبِ وَقَابِلِ التَّوۡبِ شَدِيۡدِ الۡعِقَابِ ذِى الطَّوۡلِؕ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَؕ اِلَيۡهِ الۡمَصِيۡرُ‏ ۩ ۔

[Q-40:03]

            वह अल्लाह है! जो गुनाहों को माफ करने वाला और तौबा कबूल करने वाला और सख्त अज़ाब वाला और रहम करने वाला है। उसके अलावा कोई ईश्वर नहीं है। हमें उसी के पास लौटना होगा.

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क़ुरान के अनुसार! पहला धर्म इस्लाम है।

مَا يَاۡتِيۡهِمۡ مِّنۡ ذِكۡرٍ مِّنۡ رَّبِّہِمۡ مُّحۡدَثٍ اِلَّا اسۡتَمَعُوۡهُ وَهُمۡ يَلۡعَبُوۡنَۙ‏ ۩ ۔

[Q-21:02]

              ऐ किताबवालों, यह तुम्हारे रब की ओर से कोई नई बात नहीं है। परन्तु वे यह बात सुनकर अनसुना कर देते हैं।

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सांप्रदायिकता।

فَاَقِمۡ وَجۡهَكَ لِلدِّيۡنِ حَنِيۡفًا ‌ؕ فِطۡرَتَ اللّٰهِ الَّتِىۡ فَطَرَ النَّاسَ عَلَيۡهَا ‌ؕ لَا تَبۡدِيۡلَ لِخَـلۡقِ اللّٰهِ‌ ؕ ذٰ لِكَ الدِّيۡنُ الۡقَيِّمُ ۙ  وَلٰـكِنَّ اَكۡثَرَ النَّاسِ لَا يَعۡلَمُوۡنَ ۙ ۩  مُنِيۡبِيۡنَ اِلَيۡهِ وَاتَّقُوۡهُ وَاَقِيۡمُوا الصَّلٰوةَ وَلَا تَكُوۡنُوۡا مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَۙ‏ ۩  مِنَ الَّذِيۡنَ فَرَّقُوۡا دِيۡنَهُمۡ وَكَانُوۡا شِيَعًا ‌ؕ كُلُّ حِزۡبٍۢ بِمَا لَدَيۡهِمۡ فَرِحُوۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-30:30-32]

             अतः काफिरों से दूर हो जाओ और सीधे धर्म के मार्ग पर चलो। [और] यह अल्लाह की प्रकृति है जिसके आधार पर उसने लोगों को बनाया। ईश्वर की रचना में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। इस्लाम स्थापित धर्म है, लेकिन अधिकांश लोग इसे नहीं समझते हैं। [मुस्लिमों] उसकी (अल्लाह की) ओर झुकाव रखें। और परहेज़गारी अपनाओ. और नमाज़ पढ़ो। और उन मुश्रिकों की तरह न बनो। जिन्होंने अपने धर्म को फ़िरक़ों में बाँट दिया। और हर सम्प्रदाय उन तर्कों से प्रसन्न था और प्रसन्न है, जो उनके पास हैं।

             अल्लाह सर्वशक्तिमान कहते हैं. यदि आप मोमिन (आस्तिक) हैं, तो मोमीनों (विश्वासियों) के मार्ग पर चलें। मुश्रिकों और काफिरों (अविश्वासियों ) की ओर न देखो। यहाँ ईश्वर / अल्लाह  अपनी प्रकृति का वर्णन करता है। जिस पर इंसानों की रचना की गई है. और जिसे अब बदला नहीं जा सकता, और यह प्रकृति है! मनुष्य में अच्छाई और बुराई का सह-अस्तित्व। और यही कारण है कि जब कोई व्यक्ति बुराई को छोड़कर सत्य का रास्ता अपना लेता है और अल्लाह से माफ़ी मांगता है, तो अल्लाह ने उसके लिए माफ़ी का वादा किया है।

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मानवजाति के लिए परमेश्वर की अंतिम दिन की घोषणा।

وَاتَّبِعُوۡۤا اَحۡسَنَ مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ مِّنۡ قَبۡلِ اَنۡ يَّاۡتِيَكُمُ الۡعَذَابُ بَغۡتَةً وَّاَنۡتُمۡ لَا تَشۡعُرُوۡنَۙ‏ ۩ ۔

[Q-39:55]

             और उस श्रेष्ट (क़ुरआन) का अनुसरण करो जो तुम्हारे रब ने तुम पर अवतरित किया है। इससे पहले कि तुम पर सज़ा आ पड़े।  जिसके बारे में आपको पता भी नहीं है। (55)


اَوۡ تَقُوۡلَ لَوۡ اَنَّ اللّٰهَ هَدٰٮنِىۡ لَكُنۡتُ مِنَ الۡمُتَّقِيۡنَۙ‏ ۩  اَوۡ تَقُوۡلَ حِيۡنَ تَرَى الۡعَذَابَ لَوۡ اَنَّ لِىۡ كَرَّةً فَاَكُوۡنَ مِنَ الۡمُحۡسِنِيۡنَ‏ ۩  بَلٰى قَدۡ جَآءَتۡكَ اٰيٰتِىۡ فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَاسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنۡتَ مِنَ الۡكٰفِرِيۡنَ‏ ۩ ۔

[Q-39:57-59]

             क़यामत  के दिन! यह कहो। कि यदि अल्लाह मुझे मार्ग दिखाता तो मैं भी पवित्र हो जाता। (57) या जब सज़ा (अज़ाब) आ जाये तो कहो। कि अगर मेरे लिए दोबारा उस दुनिया में जाना संभव होता तो मैं निश्चित रूप से अच्छे कर्म करने वालों में से एक होता। (58) ख़ुदा कहेगा! निस्संदेह, मेरी आयतें तुम तक पहुँच चुकी थीं, परन्तु तुमने उन्हें झुठलाया और अहंकार किया। और तुम काफ़िरों में शामिल हो गये (59)

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अल्लाह के रसूल ﷺ की वसीयत, खुतबा हज्जतुल विदा।

               9वीं धू अल-हिज्जा 10वीं हिजरी की दोपहर को, अल्लाह के रसूल मोहम्मद ﷺ ने अराफात के मैदान में एक ऐतिहासिक उपदेश दिया। इस उपदेश को हज्जतु अल-विदा के नाम से जाना जाता है। शोध से पता चलता है कि पैगंबर ﷺ हज के उद्देश्य से 4 धू अल-हिज्जा से 13 धू अल-हिज्जा तक मक्का में रहे। और इस दौरान उन्होंने कई उपदेश दिए. प्रस्तुत उपदेश उन सभी उपदेशों का संग्रह है।

              लेखकों ने खुतबा हज्जत अल-विदा को कई किताबों में दर्ज किया है। और बहुत सी परम्पराएँ (रिवायत) भी उपलब्ध हैं। लेकिन फिर भी बिंदुवार प्रमाण नहीं मिल पाता. इसलिए, मैं यहां केवल उन्हीं बिंदुओं को प्रस्तुत करूंगा, जिनकी पुष्टि कुरान द्वारा होती है। इसलिए, मैं किसी लेखक या हदीस का हवाला नहीं दे रहा हूं।

              अल्लाह की स्तुति करने के बाद, अल्लाह के रसूल ﷺ ने कहा: मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई भी पूजा के योग्य नहीं है। वह अकेला है। उसका कोई भागीदार नहीं है। और मैं गवाही देता हूं कि मैं उसका सेवक और रसूल हूं। ऐ अल्लाह के बंदों, मैं तुम्हें अल्लाह की परहेज़गारी वसीयत करता हूँ। और मैं आपसे उसके हुक्म मानने का आग्रह करता हूं। और मैं वही कहता हूं जो तुम्हारे लिए अच्छा है।

              ऐ लोगो, मेरी बात ध्यान से सुनो! मुझे लगता है कि इस साल के बाद मैं आपसे इस क्षेत्र में दोबारा नहीं मिल पाऊंगा. आपने कहा!

              ऐ मुसलमानों, तुम्हारी जान, तुम्हारी दौलत और तुम्हारी इज़्ज़त एक दूसरे के लिए हराम है, जैसे आज के दिन इस शहर में और इस महीने में बेअदबी हराम है। जल्द ही आप अपने रब से मिलेंगे। और फिर वह आपसे आपके कर्मों के बारे में प्रश्न करेगा। इसलिए मेरे बाद भटक न जाना और एक दूसरे की जान-माल के दुश्मन न बन जाना।

              ऐ लोगो, ज़ुल्म मत करो. निस्संदेह, किसी मुसलमान का धन तुम्हारे लिए वैध (हलाल) नहीं है, जब तक कि वह स्वयं उसे अपनी इच्छा और खुशी से तुम्हें न दे दे। एक आस्तिक की गरिमा (इज्जत), धन और जीवन दूसरे आस्तिक के लिए वर्जित (हराम) है। जैसे आज के दिन की बेअदबी।

              ऐ लोगों, अज्ञानता के युग का हर खून, धन और पद क़यामत के दिन तक मेरे पैरों तले रौंदा जाता है। और मैं अपने खून का पहला खून माफ करता हूं, जो रबीआह बिन हारिस बिन अब्दु अल-मुत्तलिब का हुजैल द्वारा हुआ था।

              ऐ लोगों, अज्ञानता के युग की सभी सूदखोरी समाप्त हो गई है। अल्लाह ताला ने सूदखोरी को हराम करार दिया है। इसीलिए सबसे पहले अब्बास बिन अब्दुलमुतालिब की सूद ख़त्म किया जाता है। हां, आप ब्याज राशि को छोड़कर मूल संपत्ति के हकदार हैं।

              ऐ लोगो, महीनों को आगे-पीछे करना कुफ्र और गुमराही की निशानी है। निस्संदेह, आज के दिन युग अपनी मूल स्थिति में लौट आया है। जैसा कि उस दिन था, जब अल्लाह ने धरती और आकाश को बनाया। दरअसल, साल में बारह महीने होते हैं। उनमें से चार महीने सम्मानजनक हैं, ज़ुकादा, धू-अल-हिज्जा, मुहर्रम और रजब के महीने।

              अज्ञानता के समय में महीनों को आगे-पीछे सरका दिया जाता था। जैसे कि आज भी भारत में महीने आगे-पीछे किये जाते हैं। हज्जत अल-विदा के वर्ष में, युग अपनी मूल स्थिति में लौट आया था। वह जिसमें अल्लाह ने ज़मीन और आसमान को पैदा किया।

               ऐ लोगो, तुम अल्लाह की हिफ़ाज़त से औरतों को अपनी हिफ़ाज़त में लेते हो, और अल्लाह के एक कलाम से तुम उनके साथ यौनाचार को अपने लिए वैध बनाते हो। आपके पास ये जमा हैं। आप उनके स्वामी नहीं हैं। इसलिए उनके साथ अच्छा व्यवहार करो। हाँ, यदि वे घोर अश्लीलता करती हैं। तो आप उन्हें अपने बिस्तर से अलग कर दें। और हल्की मार मारें। फिर यदि वे अच्छे कर्म करने का वचन दें, तो उन्हें क्षमा कर दो। उनका दुरुपयोग करने के बहाने मत तलाशो।

               ऐ लोगों, जिस तरह तुम्हें अपनी स्त्रियों पर अधिकार प्राप्त है, वैसे ही उन को भी तुम पर अधिकार है। एक महिला पर पति का अधिकार यह है कि जिन लोगों को आप पसंद नहीं करते उन्हें घर में न आने दें। और अपने बिस्तर को पराये मर्द से बचाकर रखें। और पत्नियों का अपने पतियों पर अधिकार यह है कि वे उनकी जरूरतों और उनकी सुरक्षा का ख्याल रखें। और उनके साथ अच्छा व्यवहार करें।

                ऐ लोगो, बेशक अल्लाह ने संपत्ति में हर वारिस का हिस्सा तय कर दिया है। इसलिए, उत्तराधिकारी के लिए वसीयत बनाना आवश्यक नहीं है। और बच्चा उस पुरुष का होगा जिससे बच्चे की माँ ने विवाह किया है। और व्यभिचारियों (बलात्कारियों) के लिए पत्थर हैं।

                ऐ लोगों, सावधान! जब कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसका अपराध उसके स्वयं के विरुद्ध होता है। क्योंकि उसका दण्ड उसी के लिये है। और कोई पिता अपने पुत्र के अधर्म (पाप) का दण्ड न पाएगा, और कोई पुत्र अपने पिता के अधर्म (पाप) का दण्ड न पाएगा।

               ऐ लोगों, सावधान! मुसलमान मुसलमान का भाई है. और एक भाई की चीज़ दूसरे भाई के लिए वैध (हलाल) नहीं, जब तक कि पहला भाई स्वयं उस चीज़ को अपने भाई के लिए वैध न कर दे।

               ऐ लोगो, तुम्हारा रब एक है। और तुम सब एक ही पिता आदम की सन्तान हो। किसी विदेशी की किसी अरब पर, किसी अरबी की किसी विदेशी पर, किसी काले को किसी सुर्ख पर और किसी सुर्ख को किसी काले पर कोई श्रेष्ठता नहीं है। सिवाय धर्मपरायणता के। निस्संदेह, अल्लाह की दृष्टि में तुममें सबसे अच्छा वह् है, जो तुममें सबसे अधिक परहेज़गार है।

               ऐ लोगों, जो कोई अपने पिता को छोड़कर किसी और का बेटा बन जाता है, उस पर अल्लाह, फ़रिश्ते और लोग लानत करते हैं।

              ऐ लोगो, ऐसा न हो! कि क़यामत के दिन तुम अपनी गर्दन पर गुनाहों का बोझ लेकर आओ। अल्लाह ताला के यहाँ मैं तुम्हारे किसी काम न आऊँगा।

              ऐ लोगों, दान मेरे और मेरे परिवार के लिए वैध नहीं है। अल्लाह के दूत ने ऊँट की गर्दन से एक बाल निकाला और कहा! इस बाल के बराबर भी नहीं।

अधिकांश लोग अल्लाह से प्रार्थना करते समय पैगंबर या अन्य संतों के सदक़े जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। जो मान्य नहीं है।

               ऐ लोगो, स्त्री को अपने पति की अनुमति के बिना उसके धन में से खर्च नहीं करना चाहिए। और गारंटर उस हर चीज के लिए जिम्मेदार होगा जिसकी उसने गारंटी दी है।

               ऐ लोगों, मैं तुममें से कुछ लोगों के लिए शफ़ाअत (शिफ़ारिश) करूँगा और उन्हें जन्नत में दाख़िल किया जाएगा। और कुछ लोग मुझसे छीन लिये जायेंगे, वे वही लोग होंगे जिन्होंने कुरान को त्याग दिया होगा।

                ऐ लोगो, निश्चय ही, जो विश्वास के योग्य नहीं, उसका कोई ईमान नहीं, और जो अपनी वचन का पालन नहीं करता, उसका कोई धर्म नहीं। जो कोई अल्लाह तआला के हुक्म को तोड़ेगा, वह मेरी शफ़ाअत और कौसर के पानी से महरूम हो जायेगा।

                ऐ लोगों, अल्लाह से डरो, और यदि कोई गुलाम तुम्हारा शासक बना दिया जाए, तो उसकी अवज्ञा न करो। बशर्ते कि वे अल्लाह की किताब (कुरान) के अनुसार आदेश जारी करें।

                ऐ लोगों, शिक्षित हो जाओ, इससे पहले कि दुश्मन इस पर कब्ज़ा कर ले। और इससे पहले कि ज्ञान वापस ले लिया जाए। सावधान! ज्ञान की वापसी का अर्थ है कि बुद्धिमान व्यक्ति मर जायें।

                ऐ लोगो, मेरे बाद कोई नबी न आएगा और न तुम्हारे बाद कोई क़ौम (उम्मत) होगी। इसलिए सच्चे दिल से अपने रब की इबादत करो और बड़े-बड़े गुनाहों से बचो। जो निम्नलिखित है।

  1. किसी को भी अल्लाह ताला के साथ शरीक करना।
  2. किसी की हत्या करना। हां, अगर कोई सजा का हकदार है।
  3. व्यभिचार या बलात्कार करना।
  4. चोरी करना.
  5. जिहाद के मैदान से भाग जाना।
  6. पतिव्रता स्त्री की निन्दा करना।
  7. जादू करना
  8. अनाथ का धन खाना।
  9. ब्याज लेना।
  10. माता-पिता की आज्ञा न मानना।

                जो व्यक्ति इन प्रमुख पापों से बचकर नमाज़ अदा करे, रमज़ान के महीने में रोज़ा रखे, और ख़ुशी के साथ ज़कात अदा करे। और वह अपने शासकों का आज्ञापालन करता हो। तो वह मोमिन है और निस्संदेह मोमिनों को जन्नत में प्रवेश दिया जाएगा।

                ऐ लोगों, उपहार और पुरस्कार लेना तब तक ठीक है जब तक वे पुरस्कार के रूप में बने रहें। और यदि ये पुरस्कार धर्म के बदले दिये जाते हैं तो छोड़ दो।

                ऐ लोगों, मैं तुम्हारे बीच ऐसी चीज़ छोड़ कर जा रहा हूं, कि यदि तुम उसे मजबूती से पकड़े रहोगे, तो कभी गुमराह न होओगे, और वह अल्लाह की किताब “कुरान और सुन्नत नबवी” है।

दरअसल, कुरान एक ऐसी चीज है, जिस पर अगर हम अमल करें तो गुमराह होने के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। जिस घर में कुरान की रोशनी होती है उस घर में शैतान प्रवेश नहीं करता। लेकिन “पैगंबर की सुन्नत” की पुष्टि कुरान द्वारा नहीं  होती है।

कुछ लेखक हज्जत अल-विदा के उपदेश में पैगंबर की सुन्नत का उल्लेख करते हैं, और कुछ लेखक पैगंबर की सुन्नत का उल्लेख नहीं करते हैं। अल्लाह सर्वशक्तिमान कहते हैं! कि क़ुरान सभी पवित्र पुस्तकों यानि धर्म को समझने का दर्पण है। मैं यहां कुरान की रोशनी में साबित करने की कोशिश करूंगा। कि “पैगंबर की सुन्नत” शब्द का जिक्र हकीकत में है या नहीं। विचार करें . . . . . .

قُلْ لَّاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ عِنۡدِىۡ خَزَآٮِٕنُ اللّٰهِ وَلَاۤ اَعۡلَمُ الۡغَيۡبَ وَلَاۤ اَقُوۡلُ لَـكُمۡ اِنِّىۡ مَلَكٌ ۚ اِنۡ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا يُوۡحٰٓى اِلَىَّ ؕ ۩۔

[Q-06:50]

                हे मुहम्मद, कहो! मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह की ओर से कोई खज़ाना है। और न मैं ग़ैब का इल्म (परोक्ष का ज्ञान) रखता हूँ और न मैं ऐसा कहता हूँ! कि मैं एक फरिश्ता हूँ। मैं केवल उस रहस्योद्घाटन (वह्यी) का पालन करता हूं जो मुझ पर नाज़िल (प्रकट) की जाती है। (50)


فَاِنَّكَ لَا تُسۡمِعُ الۡمَوۡتٰى وَلَا تُسۡمِعُ الصُّمَّ الدُّعَآءَ اِذَا وَلَّوۡا مُدۡبِرِيۡنَ ۩۔ وَمَاۤ اَنۡتَ بِهٰدِ الۡعُمۡىِ عَنۡ ضَلٰلَتِهِمۡ‌ؕ اِنۡ تُسۡمِعُ اِلَّا مَنۡ يُّؤۡمِنُ بِاٰيٰتِنَا فَهُمۡ مُّسۡلِمُوۡنَ ۩۔

[Q-30:52-53]

                वास्तव में, आप न तो मुर्दों को और न ही उन बहरों को धर्म की ओर बुला सकते हैं, जो पीठ फेरकर चले जाते हैं (52)। और न तुम (आँखों वाले) अंधों को, जो भटक ​​गए हों, मार्ग दिखा सकते हो। आप केवल उन्हीं का मार्गदर्शन कर सकते हैं जो हमारी आयतों पर विश्वास करते हैं। तो वही मुसलमान हैं। (53)


وَاِنۡ تُكَذِّبُوۡا فَقَدۡ كَذَّبَ اُمَمٌ مِّنۡ قَبۡلِكُمۡ‌ؕ وَمَا عَلَى الرَّسُوۡلِ اِلَّا الۡبَلٰغُ الۡمُبِيۡنُ‏ ۩۔

[Q-29:18]

                हज़रत इब्राहीम (अ.स.) अपने लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं! और यदि आपने (मेरे संदेश को) अस्वीकार कर दिया है, तो आपसे पहले कई राष्ट्रों ने (अपने पैगम्बरों को) अस्वीकार कर दिया है। और पैग़म्बर पर स्पष्ट संदेश देने के अलावा कोई दायित्व नहीं है।(18)


ثُمَّ اَوۡحَيۡنَاۤ اِلَيۡكَ اَنِ اتَّبِعۡ مِلَّةَ اِبۡرٰهِيۡمَ حَنِيۡفًا‌ ؕ وَمَا كَانَ مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَ ۩۔

[Q-16:123]

                अल्लाह पैगंबर मुहम्मद ﷺ से कहता है कि! हे मुहम्मद, हमने तुम्हारे पास एक वह्यी (रहस्योद्घाटन) भेजी है कि तुम्हें इब्राहीम के धर्म का पालन करना चाहिए। जो अल्लाह का साझीदार बनाने वालों में से नहीं थे।(123)


قُلۡ اِنَّنِىۡ هَدٰٮنِىۡ رَبِّىۡۤ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسۡتَقِيۡمٍۚ دِيۡنًا قِيَمًا مِّلَّةَ اِبۡرٰهِيۡمَ حَنِيۡفًا‌ ۚ وَمَا كَانَ مِنَ الۡمُشۡرِكِيۡنَ‏ ۩۔

[Q-06:161]

                   कहो ऐ मुहम्मद! निसन्देह, मेरे रब ने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे इब्राहीम के दृढ़ (मजबूत) धर्म का सीधा रास्ता दिखाया। जो एक (ईश्वर) की पूजा करते थे और बहुदेववादियों में से नहीं थे। (161)

  1. मोहम्मद अल्लाह के हुक्म से फरमाते हैं! मैं केवल उस रहस्योद्घाटन (वह्यी) का पालन करता हूं जो मुझ पर नाज़िल (प्रकट) की जाती है।
  2. हे मुहम्मद! आप केवल उन्हीं का मार्गदर्शन कर सकते हैं जो हमारी आयतों पर विश्वास करते हैं। तो वही मुसलमान हैं।
  3. और पैग़म्बर पर स्पष्ट संदेश देने के अलावा कोई दायित्व नहीं है।
  4. हे मुहम्मद! हमने तुम्हारे पास एक वह्यी (रहस्योद्घाटन) भेजी है कि तुम्हें इब्राहीम के धर्म का पालन करना चाहिए।
  5. कहो मुहम्मद! निसन्देह, मेरे रब ने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे इब्राहीम के दृढ़ (मजबूत) धर्म का सीधा रास्ता दिखाया।

                 दुनिया में मोजूद किसी भी पवित्र किताब में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि पैगम्बर की मृत्यु के बादअल्लाह की सुन्नतके अलावा पैगम्बरों की सुन्नत का भी पालन किया जाना चाहिए। पैगम्बर का उद्देश्य संदेश पहुंचाना है। जो उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है। ईश्वर ने पैगंबर मुहम्मद को पैगंबर इब्राहिम (अ० स०) के धर्म का पालन करने का आदेश दिया था। इब्राहिम की सुन्नत का नहीं! हजरत इब्राहिम का धर्म ईश्वर की सुन्नत पर आधारित था। Read More……….

उसके बाद, अल्लाह के रसूल मुहम्मद ने कहा।

                हे लोगों, जो लोग आज यहां हैं, वे यह आदेश उन लोगों को बताएं जो यहाँ उपस्थित नहीं हैं। यह संभव है कि कुछ अनुपस्थित लोग इन आदेशों को कुछ उपस्थित लोगों की तुलना में बेहतर ढंग से याद रखेंगे और उनका पालन करेंगे।

                उसके बाद, अल्लाह के रसूल ﷺ ने पहले अपनी तर्जनी को आकाश की ओर उठाया, और फिर लोगों की तरफ उंगली घुमाकर वहां मौजूद लोगों से पूछा? हे लोगों, क्या तुम गवाह हो? कि मैंने तुम तक अल्लाह का सन्देश पहुँचा दिया है? और संदेशवाहक अथार्थ रसूल होने का अधिकार अदा कर दिया? उपस्थित लोगों ने जोरदार आवाज़ में उत्तर दिया। हाँ, अल्लाह के रसूल, आपने अल्लाह के पूरे धर्म को हम तक पहुँचा दिया है। फिर आप ﷺ ने आसमान की तरफ देखा और तीन बार कहा। अल्लाह गवाह रहना। अल्लाह गवाह रहना। अल्लाह गवाह रहना।

                जब पैगंबर ﷺ ने अपना उपदेश समाप्त किया, तो यह आयत उन पर नाज़िल हुई।

اَ لۡيَوۡمَ اَكۡمَلۡتُ لَـكُمۡ دِيۡنَكُمۡ وَاَ تۡمَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ نِعۡمَتِىۡ وَرَضِيۡتُ لَـكُمُ الۡاِسۡلَامَ دِيۡنًا‌ ؕ ۩۔

[Q-05:03]

                आज हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा धर्म पूरा कर दिया है। और तुम्हारे लिए अपनी नेमतें पूरी कर दी हैं। और तुम्हारे लिए इस्लाम धर्म पसंद किया।

                जब हजरत उमर ने यह आयत सुनी तो वह रोने लगे। क्योंकि इस आयत में अल्लाह के रसूल ﷺ की मौत की भविष्यवाणी भी थी।

وَسَلٰمٌ عَلَى الۡمُرۡسَلِيۡنَ ‌ۚ‏ ۩ وَالۡحَمۡدُ لِلّٰهِ رَبِّ الۡعٰلَمِيۡنَ‌۩۔

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