2. पाखंडी काफ़िर

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

मुस्लिम उम्माह में पाखंडी काफ़िर।

जो लोग बाहरी तौर पर मुस्लिम हैं या मुस्लिम परिवारों में पैदा हुए हैं। लेकिन उनके दिलों में इस्लाम नहीं है या उनके दिल इस्लाम से दूर हो गए हैं। और उनके हृदय कठोर हो गए हैं, तथा यह लोग ईश्वरिय सुन्नत और शरीयत को तोड़ते हैं। वे परमेश्वर के धर्म और परलोक से ज़्यादा दुनियावी ज़िंदगी से प्यार करते हैं। ऐसे लोग पाखंडी काफ़िर हैं। अल्लाह सर्वशक्तिमान पाखंडी (मुनाफिक) काफिरों के नमाज़ जनाज़ा (अंतिम संस्कार प्रार्थना) पर भी रोक लगाता है।

اِنَّ الۡمُنٰفِقِيۡنَ يُخٰدِعُوۡنَ اللّٰهَ وَهُوَ خَادِعُوْهُمۡ‌ ۚ وَاِذَا قَامُوۡۤا اِلَى الصَّلٰوةِ قَامُوۡا كُسَالٰى ۙ يُرَآءُوۡنَ النَّاسَ وَلَا يَذۡكُرُوۡنَ اللّٰهَ اِلَّا قَلِيۡلًا  ﴿۱۴۲﴾  مُّذَبۡذَبِيۡنَ بَيۡنَ ۖ  ذٰ لِكَ لَاۤ اِلٰى هٰٓؤُلَاۤءِ وَلَاۤ اِلٰى هٰٓؤُلَاۤءِ‌ ؕ وَمَنۡ يُّضۡلِلِ اللّٰهُ فَلَنۡ تَجِدَ لَهٗ سَبِيۡلًا‏ ﴿۱۴۳﴾۔

[Q-04:142-143]

निस्संदेह, कपटी/मुनाफिक काफ़िर (अपनी दृष्टि में) अल्लाह को धोखा दे रहे हैं, जबकि वे स्वयं धोखा खा रहे हैं। और जब वे आलस्य के साथ प्रार्थना के लिये खड़े होते हैं, तो केवल लोगों को दिखाने के लिये। और परमेश्वर की महिमा नहीं करते, या बहुत कम करते है। (142) वे बीच में लटके हैं, न इस तरफ, न उस तरफ। और जिसे ख़ुदा गुमराह कर दे, उसे कभी रास्ता न मिलेगा। (143)

مَنۡ كَفَرَ بِاللّٰهِ مِنۡۢ بَعۡدِ اِيۡمَانِهٖۤ اِلَّا مَنۡ اُكۡرِهَ وَقَلۡبُهٗ مُطۡمَٮِٕنٌّۢ بِالۡاِيۡمَانِ وَلٰـكِنۡ مَّنۡ شَرَحَ بِالۡكُفۡرِ صَدۡرًا فَعَلَيۡهِمۡ غَضَبٌ مِّنَ اللّٰهِ‌ۚ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيۡمٌ‏ ﴿۱۰۶﴾۔ ذٰ لِكَ بِاَنَّهُمُ اسۡتَحَبُّوا الۡحَيٰوةَ الدُّنۡيَا عَلَى الۡاٰخِرَةِ ۙ وَاَنَّ اللّٰهَ لَا يَهۡدِى الۡقَوۡمَ الۡكٰفِرِيۡنَ‏ ﴿۱۰۷﴾  اُولٰۤٮِٕكَ الَّذِيۡنَ طَبَعَ اللّٰهُ عَلٰى قُلُوۡبِهِمۡ وَسَمۡعِهِمۡ وَاَبۡصَارِهِمۡ‌ۚ وَاُولٰۤٮِٕكَ هُمُ الۡغٰفِلُوۡنَ‏ ﴿۱۰۸﴾  لَا جَرَمَ اَنَّهُمۡ فِى الۡاٰخِرَةِ هُمُ الۡخٰسِرُوۡنَ‏ ﴿۱۰۹﴾۔

[Q-16:106-109]

जो कोई ईमान लाने के बाद ख़ुदा से कुफ्र करे। (सिवाय उसके जो मजबूर हो और जिसका दिल ईमान से संतुष्ट हो)। और जो खुलेआम अविश्वास करते हैं। उन पर ख़ुदा का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा अज़ाब है। (106) इसका कारण यह है कि उन्होंने आख़िरत पर सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दी और अल्लाह काफ़िरों को मार्ग नहीं दिखाता। (107) ये वो लोग हैं जिनके दिलों, कानों और आँखों पर ख़ुदा ने मुहर लगा दी है और ये लोग गाफिल हैं। (108) इसमें कोई संदेह नहीं कि यही लोग परलोक में हानि उठाएंगे। (109)।

وَلَا تُصَلِّ عَلٰٓى اَحَدٍ مِّنۡهُمۡ مَّاتَ اَبَدًا وَّلَا تَقُمۡ عَلٰى قَبۡرِهٖ ؕ اِنَّهُمۡ كَفَرُوۡا بِاللّٰهِ وَرَسُوۡلِهٖ وَمَاتُوۡا وَهُمۡ فٰسِقُوۡنَ‏ ﴿۸۴﴾۔

[Q-9:84]

और जब ये (मुनाफ़िक़) मर जाएँ तो इनके जनाज़े की नमाज़ बिल्कुल न पढ़ा करो। और उसकी कब्र पर खड़ा नहीं होना। क्योंकि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल पर अविश्वास किया। और उनकी मृत्यु भी अविश्वास की अवस्था में ही हुई। (84)

दस बातें!  जो अविश्वास (कुफ्र) सिद्ध करती है। 

जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता, वह अविश्वासी (काफ़िर) है। लेकिन एक आस्तिक भी कुफ्र में लिप्त हो सकता है। अगर वह लापरवाह हो जाए। चलो एक नज़र देखते हैं। . . . .

1. जो लोग एक ईश्वर और उसके पैग़ंबरों पर विश्वास नहीं करते। अर्थात् वे ईश्वर और उसके सन्देशवाहकों को झुठलाते हैं। वे अविश्वासी/काफ़िर हैं।

2. जो लोग ईश्वर के पैगम्बरों में भेद करते हैं। अर्थात्, वे परमेश्वर के कुछ पैगम्बरों पर विश्वास करते हैं, और कुछ पैगम्बरों पर विश्वास को अस्वीकार करते हैं। वे अविश्वासी/काफिर हैं।

 3. जो आस्था (ईमान) और अविश्वास (कुफ्र) के बीच नया रास्ता निकालना चाहते हैं। वे अविश्वासी/काफ़िर हैं।

اِنَّ الَّذِيۡنَ يَكۡفُرُوۡنَ بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ وَيُرِيۡدُوۡنَ اَنۡ يُّفَرِّقُوۡا بَيۡنَ اللّٰهِ وَرُسُلِهٖ وَيَقُوۡلُوۡنَ نُؤۡمِنُ بِبَعۡضٍ وَّنَكۡفُرُ بِبَعۡضٍۙ وَّيُرِيۡدُوۡنَ اَنۡ يَّتَّخِذُوۡا بَيۡنَ ذٰ لِكَ سَبِيۡلًا ۙ‏ ﴿۱۵۰﴾  اُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡـكٰفِرُوۡنَ حَقًّا‌ ۚ وَ اَعۡتَدۡنَا لِلۡكٰفِرِيۡنَ عَذَابًا مُّهِيۡنًا‏ ﴿۱۵۱﴾۔

[Q-04:150-151]

वास्तव में, जो लोग ईश्वर और उसके रसूलों पर अविश्वास (कुफ्र) करते हैं। और ईश्वर के दूतों के बीच बँटवारा करना चाहते हैं। और कहते हैं! कि हम कुछ पर विश्वास करते हैं और कुछ पर नहीं। और वे धर्म और अविश्वास (कुफ्र) के बीच एक नया रास्ता निकालना चाहते हैं। (150) निस्संदेह, ये लोग काफ़िर हैं। और हमने काफ़िरों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है। (151).

पैगम्बरों पर अविश्वास का एक उदाहरण यह भी है। कि पैगम्बर को ईश्वर का स्थान दे दिया जाए। जैसे – – – 

لَـقَدۡ كَفَرَ الَّذِيۡنَ قَالُوۡۤا اِنَّ اللّٰهَ هُوَ الۡمَسِيۡحُ ابۡنُ مَرۡيَمَ﯀ ﴿۱۷﴾۔

[Q-05:17]

निस्संदेह, जो लोग कहते हैं कि मरियम का पुत्र मसीह ईश्वर है, उन्होंने कुफ्र किया। (17).

4. जो लोग अल्लाह और उसकी आयतों को झुठलाते हैं। वे अविश्वासी/काफ़िर हैं। 

وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا وَكَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَاۤ اُولٰٓٮِٕكَ اَصۡحٰبُ الۡجَحِيۡمِ‏ ﴿۱۰﴾۔

[Q-05:10]

और जो लोग कुफ्र करते हैं, और हमारी आयतों को झुठलाते हैं, वही लोग जहन्नम के पहले वासी हैं। (10).

5. जिन लोगों ने दीन और आख़िरत पर सांसारिक जीवन को प्राथमिकता दी है। वे अविश्वासी/काफ़िर हैं। ईश्वर मुनाफ़िक़ों के बारे में एक उदाहरण भी बयान फरमाता है।

وَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّعۡبُدُ اللّٰهَ عَلٰى حَرۡفٍ‌ ‌ۚ فَاِنۡ اَصَابَهٗ خَيۡرٌ اۨطۡمَاَنَّ بِهٖ‌ ۚ وَاِنۡ اَصَابَتۡهُ فِتۡنَةُ اۨنقَلَبَ عَلٰى وَجۡهِهٖ‌ۚ خَسِرَ الدُّنۡيَا وَالۡاٰخِرَةَ ‌ ؕ ذٰ لِكَ هُوَ الۡخُسۡرَانُ الۡمُبِيۡنُ‏ ﴿۱۱﴾۔

[Q-22:11]

और लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो दिखावे की पूजा करते हैं। इसलिए, यदि उनके लिए कुछ भी अच्छा होता है, तो वह संतुष्ट होते हैं। और जब उन पर परीक्षा आती है, तो मुंह फेर लेते हैं। अत: वे इस लोक और परलोक दोनों को खो बैठे। यह उनके लिए स्पष्ट क्षति है. (11)

وَذَرِ الَّذِيۡنَ اتَّخَذُوۡا دِيۡنَهُمۡ لَعِبًا وَّلَهۡوًا وَّغَرَّتۡهُمُ الۡحَيٰوةُ الدُّنۡيَا‌ وَ ذَكِّرۡ بِهٖۤ اَنۡ تُبۡسَلَ نَفۡسٌ ۢ بِمَا كَسَبَتۡ‌ۖ  لَـيۡسَ لَهَا مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ وَلِىٌّ وَّلَا شَفِيۡعٌ‌ ۚ وَاِنۡ تَعۡدِلۡ كُلَّ عَدۡلٍ لَّا يُؤۡخَذۡ مِنۡهَا‌ ؕ اُولٰٓٮِٕكَ الَّذِيۡنَ اُبۡسِلُوۡا بِمَا كَسَبُوۡا‌ ۚ لَهُمۡ شَرَابٌ مِّنۡ حَمِيۡمٍ وَّعَذَابٌ اَ لِيۡمٌۢ بِمَا كَانُوۡا يَكۡفُرُوۡنَ‏ ﴿۷۰﴾۔

[Q-06:70]

और उन लोगों को छोड़ दो जिन्होंने अपने धर्म को खेल और तमाशा बना लिया है और इस संसार के जीवन से धोखा खा गए हैं। हाँ, आप बस उपदेश देते रहें ताकि क़यामत के दिन उनके कर्मों के कारण उनका जीवन नष्ट न हो जाए। अल्लाह के सिवा उनका कोई मित्र या सिफ़ारिश करनेवाला नहीं। और यदि वह संसार की प्रत्येक वस्तु से क्षतिपूर्ति करना चाहेंगे, तो यह परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं होगा। ये वे लोग हैं जो अपने कर्मों के कारण नष्ट हो गए। उन्हें पीने के लिए खौलता पानी और दर्दनाक सज़ा मिलेगी। क्योंकि वो इनकार करते थे (70).

وَيۡلٌ لِّـكُلِّ هُمَزَةٍ لُّمَزَةِ ۙ‏ ﴿۱﴾  اۨلَّذِىۡ جَمَعَ مَالًا وَّعَدَّدَهٗ ۙ‏ ﴿۲﴾  يَحۡسَبُ اَنَّ مَالَهٗۤ اَخۡلَدَهٗ‌ ۚ‏ ﴿۳﴾  كَلَّا‌ لَيُنۡۢبَذَنَّ فِى الۡحُطَمَةِ ﴿۴﴾۔

[Q-104:1-4]

उन सभी को शर्म आनी चाहिए जो निंदा करते हैं और चुगली करते हैं। (1) जो धन इकट्ठा करता हो और बार-बार गिनता हो। (2) वह सोचता है कि उसका धन अनन्त जीवन की ओर ले जाएगा (3)। नहीं, उसे निश्चित रूप से ‘हुतमा’ (नरक के स्तरों में से एक) में डाल दिया जाएगा। (4)

उदाहरण।

وَاتۡلُ عَلَيۡهِمۡ نَبَاَ الَّذِىۡۤ اٰتَيۡنٰهُ اٰيٰتِنَا فَانْسَلَخَ مِنۡهَا فَاَتۡبَعَهُ الشَّيۡطٰنُ فَكَانَ مِنَ الۡغٰوِيۡنَ‏ ﴿۱۷۵﴾  وَلَوۡ شِئۡنَا لَرَفَعۡنٰهُ بِهَا وَلٰـكِنَّهٗۤ اَخۡلَدَ اِلَى الۡاَرۡضِ وَاتَّبَعَ هَوٰٮهُ‌ ۚ فَمَثَلُهٗ كَمَثَلِ الۡـكَلۡبِ‌ ۚ اِنۡ تَحۡمِلۡ عَلَيۡهِ يَلۡهَثۡ اَوۡ تَتۡرُكۡهُ يَلۡهَث ‌ؕ ذٰ لِكَ مَثَلُ الۡقَوۡمِ الَّذِيۡنَ كَذَّبُوۡا بِاٰيٰتِنَا‌ ۚ فَاقۡصُصِ الۡقَصَصَ لَعَلَّهُمۡ يَتَفَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۷۶﴾۔

[Q-07:175-176]

और उन्हें उस शख्स का मामला बयान करो जिसे हमने अपनी निशानियाँ दीं, लेकिन वह उनसे अलग हो गया। फिर शैतान उसके पीछे लगा, और वह भटक गया। (175) और यदि हम चाहते तो इन आयतों के माध्यम से इसे उठा सकते थे। लेकिन वह सांसारिक आकांक्षाओं और इच्छाओं में उलझ गया। तो उसकी हालत कुत्ते जैसी हो गयी है! यदि आप उसका पीछा करते हैं, तो वह हांफता है, और यदि आप उसे छोड़ देते हैं, तो भी वह हांफता है। यह उन लोगों का उदाहरण है जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया। तो उन्हें यह कहानी बताओ। ताकि वे चिंता करें (176)।

6. जादू-टोना, ताबीज करने वाले। अविश्वासी/काफ़िर हैं। ईश्वर फ़रमाता है कि ख़ुदा के हुक्म के बिना कोई अच्छा या बुरा नहीं कर सकता। लेकिन गलत रास्ता चुनकर वे अपने जीवन पर अत्याचार करते हैं। और आख़िरत में उनका कोई हिस्सा नहीं रह जाता। क्योंकि वे उस रास्ते पर चलते हैं जो अल्लाह को पसंद नहीं है।

وَاتَّبَعُوۡا مَا تَتۡلُوا الشَّيٰطِيۡنُ عَلٰى مُلۡكِ سُلَيۡمٰنَ‌‌ۚ وَمَا کَفَرَ سُلَيۡمٰنُ وَلٰـكِنَّ الشَّيٰـطِيۡنَ كَفَرُوۡا يُعَلِّمُوۡنَ النَّاسَ السِّحۡرَ﯀ وَمَآ اُنۡزِلَ عَلَى الۡمَلَـکَيۡنِ بِبَابِلَ هَارُوۡتَ وَمَارُوۡتَ‌ؕ وَمَا يُعَلِّمٰنِ مِنۡ اَحَدٍ حَتّٰى يَقُوۡلَاۤ اِنَّمَا نَحۡنُ فِتۡنَةٌ فَلَا تَكۡفُرۡؕ‌ فَيَتَعَلَّمُوۡنَ مِنۡهُمَا مَا يُفَرِّقُوۡنَ بِهٖ بَيۡنَ الۡمَرۡءِ وَ زَوۡجِهٖ‌ؕ وَمَا هُمۡ بِضَآرِّيۡنَ بِهٖ مِنۡ اَحَدٍ اِلَّا بِاِذۡنِ اللّٰهِ‌ؕ وَيَتَعَلَّمُوۡنَ مَا يَضُرُّهُمۡ وَلَا يَنۡفَعُهُمۡ‌ؕ وَلَقَدۡ عَلِمُوۡا لَمَنِ اشۡتَرٰٮهُ مَا لَهٗ فِى الۡاٰخِرَةِ مِنۡ خَلَاقٍ‌ؕ وَلَبِئۡسَ مَا شَرَوۡا بِهٖۤ اَنۡفُسَهُمۡ‌ؕ لَوۡ کَانُوۡا يَعۡلَمُوۡنَ‏ ﴿۱۰۲﴾۔

[Q-02:102]

और वे उन शैतानों के ज्ञान (जादू के ज्ञान) का अनुसरण करते हैं। जो सुलेमान (A.S) के देश में थे। और सुलैमान ने अविश्वास नहीं किया। परन्तु शैतानों ने अविश्वास किया, और लोगों को जादू सिखाया।

और उस (जादू के ज्ञान) का अनुसरण किया जो बाबुल में दो फ़रिश्तों हारूत और मारुत पर प्रकट किया गया था। और वे किसी को तब तक शिक्षा नहीं देते थे जब तक वे यह न कह दें, “हम तो बस एक परीक्षा हैं।” तो, आप अविश्वास/कुफ्र में न पड़ो। तो उन्होंने उनसे (स्वर्गदूतों से) वह जादू सीखा जो एक आदमी को उसकी पत्नी से अलग कर देता है।

और वे ईश्वर की अनुमति के बिना इसके (जादू) से किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते थे। और वे ऐसा (जादू) सीखते थे जो उनके लिए फायदेमंद तो नहीं होता लेकिन नुकसान जरूर पहुंचाता था।

और वे जानते थे कि जो कोई इन चीज़ों को ख़रीदेगा उसे आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा। और निश्चय ही जिस चीज़ के लिए उन्होंने अपना जीवन बेच दिया, वह बुराई थी। यदि वे जानते होते। (102)।

قُلۡ اَعُوۡذُ بِرَبِّ الۡفَلَقِۙ‏ ﴿۱﴾  مِنۡ شَرِّ مَا خَلَقَۙ‏ ﴿۲﴾  وَمِنۡ شَرِّ غَاسِقٍ اِذَا وَقَبَۙ‏ ﴿۳﴾  وَمِنۡ شَرِّ النَّفّٰثٰتِ فِى الۡعُقَدِۙ‏ ﴿۴﴾  وَمِنۡ شَرِّ حَاسِدٍ اِذَا حَسَدَ ﴿۵﴾۔

[Q-113:1-5]

कहो, मैं सुबह के पालनहार की शरण लेता हूँ। (1) उस बुराई से जो उसने पैदा की।  (2) और अँधेरे की बुराई से, जब वह छा जाये। (3) और जादू टोने की बुराई से जब वे गांठों में फूंक मारते हैं। (4) और ईर्ष्यालु व्यक्ति की बुराई से, जब वह ईर्ष्या करे। (5)

7. जो लोग अल्लाह को छोड़ देते हैं। और अपनी समस्याएँ दूसरों के सामने रखते हैं। या फिर उन्हें उम्मीद है कि क़यामत के दिन वे उनकी सिफ़ारिश करेंगे। और उन्हें परमेश्वर की तरह प्यार करते हैं (उदाहरण के लिए, पीर या संतों के अनुयायी)। वे काफ़िर हैं। वे भूल जाते हैं कि सारी शक्ति केवल अल्लाह की है। और मुसलमान को सिर्फ अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए।

وَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّتَّخِذُ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ اَنۡدَادًا يُّحِبُّوۡنَهُمۡ كَحُبِّ اللّٰهِؕ وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡٓا اَشَدُّ حُبًّا لِّلّٰهِ ؕ وَلَوۡ يَرَى الَّذِيۡنَ ظَلَمُوۡٓا اِذۡ يَرَوۡنَ الۡعَذَابَۙ اَنَّ الۡقُوَّةَ لِلّٰهِ جَمِيۡعًا ۙ وَّاَنَّ اللّٰهَ شَدِيۡدُ الۡعَذَابِ‏ ﴿۱۶۵﴾۔

[Q-02:165]

और लोगों में ऐसे लोग भी हैं जो मनुष्य को ईश्वर के तुल्य बनाते हैं, और उन्हें ईश्वर के समान प्रेम करते हैं। और जो लोग परमेश्वर मे विश्वास करते हैं, वे परमेश्वर से अधिक प्रेम करते हैं। और ये लोग जिन्होंने ज़ुल्म किया। जब सज़ा देखेंगे, तो वे मान लेंगे कि सारी शक्ति अल्लाह की है, और अल्लाह कड़ी सज़ा देने वाला है (165)।

وَاَنۡذِرۡ بِهِ الَّذِيۡنَ يَخَافُوۡنَ اَنۡ يُّحۡشَرُوۡۤا اِلٰى رَبِّهِمۡ‌ لَـيۡسَ لَهُمۡ مِّنۡ دُوۡنِهٖ وَلِىٌّ وَّلَا شَفِيۡعٌ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُوۡنَ‏ ﴿۵۱﴾۔

[Q-06:51]

और जो लोग अपने रब के पास इकट्ठे होने से डरते हैं, उन्हें क़ुरआन से डराओ, उनके पास अल्लाह के सिवा कोई सहायक और सिफ़ारिश करने वाला नहीं होगा। ताकि वे पवित्र बनें। (51).

اَفَحَسِبَ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اَنۡ يَّتَّخِذُوۡا عِبَادِىۡ مِنۡ دُوۡنِىۡۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ اِنَّاۤ اَعۡتَدۡنَا جَهَـنَّمَ لِلۡكٰفِرِيۡنَ نُزُلًا‏ ﴿۱۰۲﴾۔

[Q-18:102]

तो क्या अविश्वासी लोग यह सोचते हैं कि वे मेरे स्थान पर मेरे सेवकों को मित्र बना सकते हैं? निस्संदेह, हमने जहन्नम को काफ़िरों के लिए ठिकाना बना दिया है (102)।

8. वे विद्वान लोग जो ईश्वर की आयतों को छिपाते हैं। या फिर उन्हें अपने फायदे के हिसाब से पेश करते हैं। वे अविश्वासी (काफ़िर) हैं।

وَمَنۡ لَّمۡ يَحۡكُمۡ بِمَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰهُ فَاُولٰٓٮِٕكَ هُمُ الۡكٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۴۴﴾۔

[Q-05:44]

और जो कोई तुम्हें उस (कुरान) के अनुसार निर्णय न दे जो अल्लाह ने अवतरित किया है, तो वे तुम में से काफ़िर हैं।

اِنَّ الَّذِيۡنَ يَكۡتُمُوۡنَ مَآ اَنۡزَلَ اللّٰهُ مِنَ الۡکِتٰبِ وَ يَشۡتَرُوۡنَ بِهٖ ثَمَنًا قَلِيۡلًا ۙ اُولٰٓٮِٕكَ مَا يَاۡكُلُوۡنَ فِىۡ بُطُوۡنِهِمۡ اِلَّا النَّارَ وَلَا يُکَلِّمُهُمُ اللّٰهُ يَوۡمَ الۡقِيٰمَةِ وَلَا يُزَکِّيۡهِمۡ ۖۚ وَلَهُمۡ عَذَابٌ اَ لِيۡمٌ‏ ﴿۱۷۴﴾  اُولٰٓٮِٕكَ الَّذِيۡنَ اشۡتَرَوُا الضَّلٰلَةَ بِالۡهُدٰى وَالۡعَذَابَ بِالۡمَغۡفِرَةِ‌ ۚ فَمَآ اَصۡبَرَهُمۡ عَلَى النَّارِ‏ ﴿۱۷۵﴾۔

[Q-02:174-175]

वास्तव में, जो लोग अल्लाह की उतरी हुई किताब को छिपाते हैं और बदले में थोड़ी कीमत लेते हैं। वे अपना पेट आग के अलावा किसी और चीज़ से नहीं भरते। और क़यामत के दिन अल्लाह उनसे बात नहीं करेगा और न उन्हें पवित्र करेगा। और उनके लिए दुखद यातना होगी। (174)

ये वही लोग हैं जिन्होंने हिदायत को गुमराही से और माफ़ी को सज़ा से बदल लिया। यह किस प्रकार के नरक की आग के वाहक हैं! (175).

اِنَّ الَّذِيۡنَ يَكۡتُمُوۡنَ مَآ اَنۡزَلۡنَا مِنَ الۡبَيِّنٰتِ وَالۡهُدٰى مِنۡۢ بَعۡدِ مَا بَيَّنّٰهُ لِلنَّاسِ فِى الۡكِتٰبِۙ اُولٰٓٮِٕكَ يَلۡعَنُهُمُ اللّٰهُ وَ يَلۡعَنُهُمُ اللّٰعِنُوۡنَۙ‏ ﴿۱۵۹﴾۔

[Q-02:159]

जो लोग हमारी ओर से अवतरित स्पष्ट प्रमाणों और मार्गदर्शन को छिपाते हैं। जिसे हमने किताब में लोगों के सामने स्पष्ट कर दिया है। उन पर अल्लाह की लानत है. और शाप देनेवालों की लानत है।(159)

9. जो लोग ईमान लाते हैं और बाद में काफ़िर हो जाते हैं। वे अव्वल दर्जे के पापी हैं। क्योंकि वे ज्ञान के प्रकाश से अवगत होते हुए भी अंधकार में खोये हुए हैं।

اِنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا ثُمَّ كَفَرُوۡا ثُمَّ اٰمَنُوۡا ثُمَّ كَفَرُوۡا ثُمَّ ازۡدَادُوۡا كُفۡرًا لَّمۡ يَكُنِ اللّٰهُ لِيَـغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَـهۡدِيَهُمۡ سَبِيۡلًا ؕ‏ ﴿۱۳۷﴾۔

[Q-04:137]

निस्संदेह, जो लोग ईमान लाए, फिर अविश्वास/कुफ्र किया, फिर विश्वास किया, फिर अविश्वास किया, फिर अविश्वास में बढ़ गए, परमेश्वर उन्हें क्षमा नहीं करेगा, और न ही उन्हें अपने मार्ग पर निर्देशित करेगा। (137)।

وَمَنۡ يَّرۡتَدِدۡ مِنۡكُمۡ عَنۡ دِيۡـنِهٖ فَيَمُتۡ وَهُوَ کَافِرٌ فَاُولٰٓٮِٕكَ حَبِطَتۡ اَعۡمَالُهُمۡ فِى الدُّنۡيَا وَالۡاٰخِرَةِ ‌‌ۚ وَاُولٰٓٮِٕكَ اَصۡحٰبُ النَّارِ‌‌ۚ هُمۡ فِيۡهَا خٰلِدُوۡنَ‏ ﴿۲۱۷﴾۔

[Q-02:217]

और तुम में से जो कोई अपने धर्म से फिर जाए और काफ़िर होकर मर जाए, तो ऐसे लोगों के कर्म इस दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो जाएँगे। और ये जहन्नम के रहने वाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे (217)।

10. जो सांसारिक आराम के लिए अविश्वास (कुफ्र) की बात करता है वह काफिर है।

يَحۡلِفُوۡنَ بِاللّٰهِ مَا قَالُوۡا ؕ وَلَقَدۡ قَالُوۡا كَلِمَةَ الۡـكُفۡرِ وَكَفَرُوۡا بَعۡدَ اِسۡلَامِهِمۡ وَهَمُّوۡا بِمَا لَمۡ يَنَالُوۡا‌ ۚ وَمَا نَقَمُوۡۤا اِلَّاۤ اَنۡ اَغۡنٰٮهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوۡلُهٗ مِنۡ فَضۡلِهٖ‌ ۚ فَاِنۡ يَّتُوۡبُوۡا يَكُ خَيۡرًا لَّهُمۡ‌ ۚ وَاِنۡ يَّتَوَلَّوۡا يُعَذِّبۡهُمُ اللّٰهُ عَذَابًا اَلِيۡمًا ۙ فِى الدُّنۡيَا وَالۡاٰخِرَةِ‌ ۚ وَمَا لَهُمۡ فِى الۡاَرۡضِ مِنۡ وَّلِىٍّ وَّلَا نَصِيۡرٍ‏ ﴿۷۴﴾۔

[Q-09:74]

वे ख़ुदा की क़सम खाते हैं कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा, और वास्तव में उन्होंने कुफ़्र की बात कही, और इस्लाम स्वीकार करने के बाद काफ़िर हो गये। और उन्हें वह नहीं मिलेगा जिसकी उन्हें चिंता थी। और क्या वे क्रोधित थे, जबकि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें अपनी कृपा से समृद्ध कर दिया था? अतः यदि वे तौबा कर लें, तो यह उनके लिए बेहतर है। यदि वे मुँह मोड़ेंगे तो अल्लाह उन्हें इस दुनिया में और आख़िरत में दुखद यातना देगा। और धरती में उनका कोई संरक्षक या सहायक न होगा (74)।

निस्संदेह मेरा रब क्षमाशील एंवम दयालु है।

अल्लाह तआला फ़रमाता है। यह सांसारिक जीवन एक खेल और तमाशा मात्र है। इसलिए सांसारिक इच्छाओं के लिए धर्म से विमुख न हों। और यदि तुमने अज्ञानता से कोई बुरा काम कर लिया है, तो तौबा करो और नेक बनो, निस्संदेह परमेश्वर ने अपने ऊपर दयालुता अनिवार्य कर ली है। वह क्षमाशील है।

اِنَّمَا الۡحَيٰوةُ الدُّنۡيَا لَعِبٌ وَّلَهۡوٌ﯀وَاِنۡ تُؤۡمِنُوۡا وَتَتَّقُوۡا يُؤۡتِكُمۡ اُجُوۡرَكُمۡ وَلَا يَسۡــَٔــلۡكُمۡ اَمۡوَالَكُمۡ‏ ﴿۳۶﴾۔

[Q-47:36]

वस्तुतः यह सांसारिक जीवन एक खेल और तमाशा मात्र है। यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरो, तो वह तुम्हें तुम्हारा प्रतिफल देगा और तुमसे तुम्हारा धन नहीं माँगेगा (36)।

وَاِذَا جَآءَكَ الَّذِيۡنَ يُؤۡمِنُوۡنَ بِاٰيٰتِنَا فَقُلۡ سَلٰمٌ عَلَيۡكُمۡ‌ كَتَبَ رَبُّكُمۡ عَلٰى نَفۡسِهِ الرَّحۡمَةَ‌ ۙ اَنَّهٗ مَنۡ عَمِلَ مِنۡكُمۡ سُوۡٓءًۢا بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابَ مِنۡۢ بَعۡدِهٖ وَاَصۡلَحَۙ فَاَنَّهٗ غَفُوۡرٌ رَّحِيۡمٌ‏ ﴿۵۴﴾۔

[Q-06:54]

और जब वे लोग जो हमारी आयतों पर ईमान लाए, तुम्हारे पास आएं तो कहो, तुम पर सलामती हो। और कहो, तुम्हारे रब ने अपने ऊपर दया अनिवार्य कर ली है, अर्थात्! तुम में से जो कोई अनजाने में कोई बुरा काम कर बैठे, फिर बाद में तौबा कर ले और अपने आप में सुधार कर ले, तो निश्चय ही ईश्वर बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान है। (54)

ثُمَّ اِنَّ رَبَّكَ لِلَّذِيۡنَ عَمِلُوا السُّوۡۤءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ تَابُوۡا مِنۡۢ بَعۡدِ ذٰ لِكَ وَاَصۡلَحُوۡۤا ۙ اِنَّ رَبَّكَ مِنۡۢ بَعۡدِهَا لَغَفُوۡرٌ رَّحِيۡمٌ ﴿۱۱۹﴾۔

[Q-16:119]

फिर जिन लोगों ने अज्ञानता से बुरे कर्म किये, फिर पश्चात्ताप किया और अपने आप को सुधार लिया, तुम्हारा रब ऐसे लोगों को अवश्य क्षमा कर देगा। और वह दयालु है (119).

رَّبُّكُمۡ اَعۡلَمُ بِمَا فِىۡ نُفُوۡسِكُمۡ‌ؕ اِنۡ تَكُوۡنُوۡا صٰلِحِيۡنَ فَاِنَّهٗ كَانَ لِلۡاَوَّابِيۡنَ غَفُوۡرًا‏ ﴿۲۵﴾۔

[Q-17:25]

तुम्हारा रब जानता है कि तुम्हारे दिलों में क्या है, अगर तुम परहेज़गार हो तो वह तौबा करने वालों को ज़रूर माफ कर देगा। (25).

اِلَّا الَّذِيۡنَ تَابُوۡا وَاَصۡلَحُوۡا وَاعۡتَصَمُوۡا بِاللّٰهِ وَاَخۡلَصُوۡا دِيۡنَهُمۡ لِلّٰهِ فَاُولٰٓٮِٕكَ مَعَ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ‌ ؕ وَسَوۡفَ يُـؤۡتِ اللّٰهُ الۡمُؤۡمِنِيۡنَ اَجۡرًا عَظِيۡمًا‏ ﴿۱۴۶﴾۔

[Q-04:146]

परन्तु जो लोग तौबा कर लेते हैं, और पवित्र हो जाते हैं, और अल्लाह की रस्सी को मजबूती से पकड़ लेते हैं और अल्लाह के लिए अपने धर्म में सच्चे होते हैं, तो वे अल्लाह के निकट ईमान वाले हैं। और जल्द ही ईश्वर ईमानवालों को एक बड़ा इनाम देगा (146)।

पाखंडी काफ़िरों के लिए सांसारिक विलासिता।

महान परमेश्वर मुनाफिक और अविश्वासियों के लिए सांसारिक रंगों और विलासिता के दरवाजे खोल देता है। ताकि उसके पापों का घड़ा भर जाए। और क़यामत (प्रलय) के दिन उसके लिए कोई उज़्र (क्षमा) शेष न रहे।  

اَللّٰهُ يَبۡسُطُ الرِّزۡقَ لِمَنۡ يَّشَآءُ وَيَقۡدِرُ‌ؕ وَفَرِحُوۡا بِالۡحَيٰوةِ الدُّنۡيَا ؕ وَمَا الۡحَيٰوةُ الدُّنۡيَا فِى الۡاٰخِرَةِ اِلَّا مَتَاعٌ ﴿۲۶﴾۔

[Q-13:26]

ख़ुदा जिसे चाहता है भरपूर रोज़ी देता है, या रोज़ी तंग कर देता है। और वह (संपन्न) सांसारिक जीवन से खुश हो जाता है। और इस दुनिया के जीवन की वास्तविकता आख़िरत की तुलना में कुछ भी नहीं है। यह सिर्फ एक अस्थायी चीज़ है. (26).

مَنۡ كَانَ يُرِيۡدُ الۡحَيٰوةَ الدُّنۡيَا وَ زِيۡنَتَهَا نُوَفِّ اِلَيۡهِمۡ اَعۡمَالَهُمۡ فِيۡهَا وَهُمۡ فِيۡهَا لَا يُبۡخَسُوۡنَ‏ ﴿۱۵﴾  اُولٰٓٮِٕكَ الَّذِيۡنَ لَـيۡسَ لَهُمۡ فِىۡ الۡاٰخِرَةِ اِلَّا النَّارُ‌ ‌ۖ  ؗ وَحَبِطَ مَا صَنَعُوۡا فِيۡهَا وَبٰطِلٌ مَّا كَانُوۡا يَعۡمَلُوۡنَ‏ ﴿۱۶﴾۔

[Q-11:15-16]

जो कोई इस दुनिया की जिंदगी और उसकी सजावट चाहेगा, हम उसे इस (दुनिया) में उसके कर्मों का पूरा बदला देंगे और उसका अधिकार कम नहीं होगा। (15) ये वे लोग हैं जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा कुछ नहीं है और उन्होंने इस दुनिया में जो कुछ किया वह व्यर्थ है और जो कुछ वे करते थे वह बेकार है। (16)

فَلَمَّا نَسُوۡا مَا ذُكِّرُوۡا بِهٖ فَتَحۡنَا عَلَيۡهِمۡ اَبۡوَابَ كُلِّ شَىۡءٍ ؕ حَتّٰٓى اِذَا فَرِحُوۡا بِمَاۤ اُوۡتُوۡۤا اَخَذۡنٰهُمۡ بَغۡتَةً فَاِذَا هُمۡ مُّبۡلِسُوۡنَ‏ ﴿۴۴﴾۔

[Q-06:44]

तो जब वे (मुनाफिक) उस सलाह को भूल गए जो उन्हें दी गई थी। तो हमने उनके लिए हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिये। जब वे इन विलासिता में डूबे हुए थे, तब ही हमने उन्हें अचानक पकड़ लिया और वे आश्चर्यचकित रह गए (44)।

فَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّقُوۡلُ رَبَّنَآ اٰتِنَا فِى الدُّنۡيَا وَمَا لَهٗ فِى الۡاٰخِرَةِ مِنۡ خَلَاقٍ‏ ﴿۲۰۰﴾۔

[Q-02:200]

और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दुआ करते हैं कि ऐ हमारे रब, हमें इस दुनिया में आशीर्वाद दे, ऐसे लोगों को आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं मिलेगा (200)।

मुनाफिक (पाखंडी) शैतानों के साथी हैं।

मुनाफ़िक़ बाहरी तौर पर मुस्लिम समुदाय का हिस्सा हैं, लेकिन असल में वे शैतानों के साथी हैं। और शैतानों के कामों में सहायता करते हैं। ये घरेलू दुश्मन हैं जो मुस्लिम समुदाय को नुकसान पहुंचाते हैं। वास्तव में, उन्हें परमेश्वर ने अस्वीकार कर दिया है।

وَيَحۡلِفُوۡنَ بِاللّٰهِ اِنَّهُمۡ لَمِنۡكُمۡؕ وَمَا هُمۡ مِّنۡكُمۡ وَلٰـكِنَّهُمۡ قَوۡمٌ يَّفۡرَقُوۡنَ‏ ﴿۵۶﴾۔

[Q-09:56]

और वे (मुनाफिक) परमेश्वर की शपथ खाते हैं। निश्चय ही वे तुम्हारे ही बीच से हैं। परन्तु वे तुम में से नहीं हैं। बल्कि, वे डरपोक लोग हैं (56)।

اَلۡمُنٰفِقُوۡنَ وَالۡمُنٰفِقٰتُ بَعۡضُهُمۡ مِّنۡۢ بَعۡضٍ‌ۘ يَاۡمُرُوۡنَ بِالۡمُنۡكَرِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ الۡمَعۡرُوۡفِ وَيَقۡبِضُوۡنَ اَيۡدِيَهُمۡ‌ؕ نَسُوا اللّٰهَ فَنَسِيَهُمۡ‌ؕ اِنَّ الۡمُنٰفِقِيۡنَ هُمُ الۡفٰسِقُوۡنَ‏ ﴿۶۷﴾۔  

[Q-09:67]

मुनाफिक पुरुष और मुनाफिक महिलाएं एक दूसरे से संबंधित हैं। वे आपसे बुरे काम करने के लिए कहते हैं। और अच्छे कर्म करने से रोकते है। और हाथों को खर्च करने से रोकते है। वे भगवान को भूल गये, तो भगवान भी उन्हें भूल गये। निःसन्देह मुनाफिक दुष्ट हैं। (67).

पाखंडी काफ़िरों के अच्छे कर्म व्यर्थ हो जायेंगे।

पाखंडी केवल दिखावे के लिए आलस्य और हृदयहीनता से पूजा करते हैं। और ईश्वर के नाम पर खुशी से खर्च नहीं करते। और ईश्वर पर विश्वास नहीं करते। इसलिए उन्हें ईश्वर के दरबार में उनकी प्रार्थनाओं और दान का प्रतिफल नहीं मिलेगा।

وَمَا مَنَعَهُمۡ اَنۡ تُقۡبَلَ مِنۡهُمۡ نَفَقٰتُهُمۡ اِلَّاۤ اَنَّهُمۡ كَفَرُوۡا بِاللّٰهِ وَبِرَسُوۡلِهٖ وَلَا يَاۡتُوۡنَ الصَّلٰوةَ اِلَّا وَهُمۡ كُسَالٰى وَلَا يُنۡفِقُوۡنَ اِلَّا وَهُمۡ كٰرِهُوۡنَ‏ ﴿۵۴﴾۔

[Q-09:54]

और इन मुनाफ़िक़ों से सदक़ा न लेने का कारण यह है कि उन्होंने ईश्वर और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया। और वे नमाज़ के लिए नहीं आते, परन्तु आलस्य के साथ। और दान नहीं देते, परन्तु दु:ख। सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए (54).

كَالَّذِيۡنَ مِنۡ قَبۡلِكُمۡ كَانُوۡۤا اَشَدَّ مِنۡكُمۡ قُوَّةً وَّاَكۡثَرَ اَمۡوَالًا وَّاَوۡلَادًا ؕ فَاسۡتَمۡتَعُوۡا بِخَلَاقِهِمۡ فَاسۡتَمۡتَعۡتُمۡ بِخَلَاقِكُمۡ كَمَا اسۡتَمۡتَعَ الَّذِيۡنَ مِنۡ قَبۡلِكُمۡ بِخَلَاقِهِمۡ وَخُضۡتُمۡ كَالَّذِىۡ خَاضُوۡا‌ ؕ اُولٰۤٮِٕكَ حَبِطَتۡ اَعۡمَالُهُمۡ فِى الدُّنۡيَا وَالۡاٰخِرَةِ‌ ۚ وَاُولٰۤٮِٕكَ هُمُ الۡخٰسِرُوۡنَ‏ ﴿۶۹﴾۔

[Q-09:69]

हे मुनफ़िक़ों, तुम उन प्रथम लोगों के समान हो। जो बल में भी तुमसे अधिक शक्तिशाली थे और धन तथा संतान में भी तुमसे अधिक शक्तिशाली थे। उन्होंने अपना भाग्य भोगा, और तुमने अपना भाग्य भोगा, जैसे कि तुमसे पहले वाले अपना भाग्य भोग चुके हैं। और तुम बकवास में व्यस्त हो गए, जैसे वे बकवास में व्यस्त थे। ये वे लोग हैं जिनके पुण्य इस लोक और परलोक में नष्ट हो गये। और यही लोग हारने वाले हैं। (69)।

पाखंडी काफ़िर को दुनिया में भी सज़ा।

मुनाफ़िक़ों को अल्लाह इतना नापसंद करता है कि वह उन्हें इस दुनिया में आशीर्वाद देता है ताकि आख़िरत में कोई आपत्ति न बचे। लेकिन इसके बावजूद भगवान उन पर विपत्तियों का साया भी बनाए रखते हैं। और ऐसा इसलिये है ताकि मनुष्य आत्मविश्लेषण कर सके। और परमेश्वर को याद करे। दरअसल, भगवान द्वारा दिए गए नुकसान में भी अच्छाई छिपी होती है।

اَوَلَا يَرَوۡنَ اَنَّهُمۡ يُفۡتَـنُوۡنَ فِىۡ كُلِّ عَامٍ مَّرَّةً اَوۡ مَرَّتَيۡنِ ثُمَّ لَا يَتُوۡبُوۡنَ وَلَا هُمۡ يَذَّكَّرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۶﴾۔

[Q-09:126]

क्या इन मूनाफिकों को यह नहीं दिखता कि साल में एक या दो बार उनकी परीक्षा ली जाती है? फिर भी वे न तो पश्चाताप करते हैं और न ही सलाह स्वीकार करते हैं (126)।

وَلَا تُعۡجِبۡكَ اَمۡوَالُهُمۡ وَاَوۡلَادُهُمۡ‌ؕ اِنَّمَا يُرِيۡدُ اللّٰهُ اَنۡ يُّعَذِّبَهُمۡ بِهَا فِى الدُّنۡيَا وَتَزۡهَقَ اَنۡفُسُهُمۡ وَهُمۡ كٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۸۵﴾۔

[Q-09:85]

और इन मुनफ़िक़ों की संपत्ति और सन्तान पर आश्चर्य मत करो! अल्लाह केवल इस धन के माध्यम से उन्हें इस दुनिया में दंडित करना चाहता है। और उनकी इस अवस्था में मौत हो कि वो काफ़िर रहें। (85).

पाखंडी काफ़िर अन्य काफिरों की तुलना में अधिक गहरी नरक में होंगे।

पाखंडी अविश्वासियों को अन्य अविश्वासियों की तुलना में अधिक कठोर दंड मिलेगा। इन पाखंडियों को नरक की गहराइयों में फेंक दिया जाएगा। क्योंकि ये वही लोग होंगे,जो लोग अल्लाह और उसके दीन और सच्चाई को जानते और पहचानते थे।  फिर भी वे अविश्वास और शैतान के रास्ते पर चले।

اِنَّ الۡمُنٰفِقِيۡنَ فِى الدَّرۡكِ الۡاَسۡفَلِ مِنَ النَّارِ‌ ۚ وَلَنۡ تَجِدَ لَهُمۡ نَصِيۡرًا ۙ‏ ﴿۱۴۵﴾۔

[Q-04:145]

सचमुच, मुनाफिक लोग नरक के सबसे निचले भाग में होंगे। और तुम उनका कोई सहायक न पाओगे। (145).

اِنَّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا بِاٰيٰتِنَا سَوۡفَ نُصۡلِيۡهِمۡ نَارًا ؕ كُلَّمَا نَضِجَتۡ جُلُوۡدُهُمۡ بَدَّلۡنٰهُمۡ جُلُوۡدًا غَيۡرَهَا لِيَذُوۡقُوا الۡعَذَابَ‌ ؕ اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَزِيۡزًا حَكِيۡمًا‏ ﴿۵۶﴾ ۔

[Q-04:56]

निस्संदेह, जिन लोगों ने हमारी आयतों पर इनकार किया, हम उन्हें नरक में डाल देंगे।  जब उनकी खालें जल जाएंगी तो हम उन्हें नई खालों में बदल देंगे।’ ताकि वे सज़ा का स्वाद चखते रहें। निस्संदेह, अल्लाह प्रभुत्वशाली व तत्वदर्शी है (56)।

وَعَدَ اللّٰهُ الۡمُنٰفِقِيۡنَ وَالۡمُنٰفِقٰتِ وَالۡـكُفَّارَ نَارَ جَهَـنَّمَ خٰلِدِيۡنَ فِيۡهَا‌ ؕ هِىَ حَسۡبُهُمۡ‌ ۚ وَلَـعَنَهُمُ اللّٰهُ‌ ۚ وَلَهُمۡ عَذَابٌ مُّقِيۡمٌ ۙ‏ ﴿۶۸﴾۔

[Q-09:68]

अल्लाह ने मुनाफिक पुरुषों और मुनाफिक महिलाओं और काफिरों से नरक का वादा किया है। कि वह उनके लिए काफी है। परमेश्वर उन्हें श्राप देता हैं। और उनके लिए अनन्त यातना है (68)।

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