2. साधु-संत और अनुयायी।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَ اَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

इस अध्याय में हम मुसलमानों के साधु-संत और अनुयायी बनने के बारे में बात करेंगे।

पीर / मुर्शिद / साधु-संत / दरवेश का इतिहास।

पीर, मुर्शिद, औलिया, वली, दरवेश साधु, संत और राहिब सभी अलग-अलग नाम हैं जिनकी विशेषताएं लगभग एक जैसी हैं। कुरान में राहिब और औलिया शब्द का प्रयोग किया गया है।

माना जाता है कि भारत में मठवाद (आस्तानों) की शुरुआत पंद्रहवीं शताब्दी में कबीर दास ने की थी। जबकि अजमेर के इस्लामिक भिक्षु ख्वाजा मुइन-उद-दीन चिश्ती का काल 12वीं से 13वीं शताब्दी तक था। अगर हम और  पीछे जाएं तो यह 11वीं से 12वीं सदी के बगदाद के गॉश-ए-आजम शेख अब्दुल-कादिर जिलानी का है।

मेरी अब तक की जानकारी के अनुसार पैगम्बर (ﷺ) के समय या खलीफाओं के समय में किसी इस्लामी भिक्षु (पीर/फकीर) का कोई साक्ष्य नहीं है। हाँ! आपको पैगम्बर के कई शहीद साथी (सहाबा) अवश्य मिलेंगे जिन्होंने धर्म की खातिर अपनी जानें कुर्बान कर दी। जिन सहाबा ने अल्लाह के रसूल (ﷺ) के हाथों पर निष्ठा की प्रतिज्ञा ली थी उन सहाबा के लिए खुदा फरमाता है . . .

اِنَّ الَّذِيۡنَ يُبَايِعُوۡنَكَ اِنَّمَا يُبَايِعُوۡنَ اللّٰهَ ؕ يَدُ اللّٰهِ فَوۡقَ اَيۡدِيۡهِمۡ‌ ۚ ﴿۱۰﴾۔

[Q-48:10]

वास्तव में, जो लोग आपके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करते हैं वे वास्तव में खुदा के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करते हैं, खुदा का हाथ उनके हाथों पर है।

क्या पैगंबर के उन साथियों से बड़ा कोई साधु या वली होगा, जिनके ऊपर खुदा का हाथ था? लेकिन अल्लाह ताला इन लोगों को भी साधु या वली नहीं कहता। क्योंकि खुदा ने कभी भी मठवाद का आदेश ही नहीं दिया। अल्लाह कहता है, धर्मनिष्ठा (तकवा) का पालन करो। अर्थात् पवित्र बनो। अर्थात् सभी सांसारिक उत्तरदायित्वों को निभाते हुए धर्मनिष्ठ बने रहो।

मठवाद वास्तव में लगभग 2000 वर्ष पहले यीशु (अ.स.) के बाद उनके ईसाई समुदाय में शुरू हुआ था। आज के ईसाई समुदाय में भिक्षु को संत कहा जाता है।  ईसाई मठवाद का उद्देश्य सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त रहकर और ध्यान करके ईश्वर को प्रसन्न करना था।

यह अवस्था स्वर्गीय पुस्तकों में निहित धर्मपरायणता के क्रम से एक कदम ऊपर थी। क्योंकि ईसाई राष्ट्र के संत पारिवारिक जीवन में प्रवेश नहीं कर सकते। अल्लाह फरमाता है . . . . .

ثُمَّ قَفَّيۡنَا عَلٰٓى اٰثَارِهِمۡ بِرُسُلِنَا وَقَفَّيۡنَا بِعِيۡسَى ابۡنِ مَرۡيَمَ وَاٰتَيۡنٰهُ الۡاِنۡجِيۡلَ ۙ وَجَعَلۡنَا فِىۡ قُلُوۡبِ الَّذِيۡنَ اتَّبَعُوۡهُ رَاۡفَةً وَّرَحۡمَةً﯀ وَرَهۡبَانِيَّةَ اۨبۡتَدَعُوۡهَا مَا كَتَبۡنٰهَا عَلَيۡهِمۡ اِلَّا ابۡتِغَآءَ رِضۡوَانِ اللّٰهِ فَمَا رَعَوۡهَا حَقَّ رِعَايَتِهَا‌ ۚ  فَاٰتَيۡنَا الَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡا مِنۡهُمۡ اَجۡرَهُمۡ‌ۚ وَكَثِيۡرٌ مِّنۡهُمۡ فٰسِقُوۡنَ‏ ﴿۲۷﴾۔

[Q-57:27]

फिर हमने अपने रसूलों के बाद उनके नक्शेकदम पर चलने वाले नबी भेजे। और उनके बाद ईसा इब्ने मरयम (रसूल) को भेजा। और हमने उन्हें सुसमाचार दिया। और हमने उन लोगों को, जो उसके (यीशु के) अनुयायी बने, नम्र और दयालु हृदय बनाया।

और हमने उन पर अद्वैतवाद नहीं थोपा, उन्होंने ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए स्वयं इसका आविष्कार किया। परन्तु उन्होंने इस अद्वैतवाद का उतना ध्यान नहीं रखा जितना रखना चाहिए था। तो जो लोग ईमान लाए, हमने उन्हें उनका बदला दे दिया। और उनमें से अधिकतर अनैतिक हैं। (27)

وَلَـتَجِدَنَّ اَ قۡرَبَهُمۡ مَّوَدَّةً لِّـلَّذِيۡنَ اٰمَنُوا الَّذِيۡنَ قَالُوۡۤا اِنَّا نَصٰرٰى‌ ؕ ذٰ لِكَ بِاَنَّ مِنۡهُمۡ قِسِّيۡسِيۡنَ وَرُهۡبَانًا وَّاَنَّهُمۡ لَا يَسۡتَكۡبِرُوۡنَ‏ ﴿۸۲﴾۔

[Q-05:82]

और आप (ﷺ) उन लोगों को प्रेम में ज्यादा करीब पाएंगे, जो ईमान लाए, और उन्होंने कहा कि हम वास्तव में ईसाई हैं, और इसका कारण यह है कि उनमें पादरी और संत भी हैं। और वे अहंकारी भी नहीं हैं। (82).


साधु-संत और अनुयायी / मुरीद।

वे साधु या संत जिनकी ईश्वर से निकटता प्रकट होती है। अगर हम उनके पास धर्म सीखने जाएं तो कोई हानि वाली बात नहीं। लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता। लोग इन लोगों के इतने अधीन हो जाते हैं। कि गुलामी उजागर होती है। कुछ लोगों की सोच इतनी विकृत हो जाती है कि वे अपनी आवश्यकताएं और समस्याओं को अल्लाह के सामने रखने की बजाय साधु-संतों के सामने रखने लगते हैं। ये लोग मतिभ्रम से पीड़ित होते हैं और आशा करते हैं, कि ये लोग अल्लाह के सामने हमारी सिफ़ारिश करेंगे और हमें जन्नत का हक़ दिलाएंगे। (अल्लाह की शरण)

अब ऐसे लोग खुद को मुसलमान मान सकते हैं। लेकिन क़यामत का दिन उनके लिए केवल पछतावे का दिन होगा। बाकी खुदा जिसे चाहेगा बख्श देगा। अल्लाह कहता है।

وَلَا تَرۡكَنُوۡۤا اِلَى الَّذِيۡنَ ظَلَمُوۡا فَتَمَسَّكُمُ النَّارُۙ وَمَا لَـكُمۡ مِّنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مِنۡ اَوۡلِيَآءَ ثُمَّ لَا تُنۡصَرُوۡنَ‏ ﴿۱۱۳﴾۔

[Q-11:113]

और (ऐ ईमानवालों) ज़ालिमों की संगति न करना, नहीं तो आग तुम्हें छू जायेगी। और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई संरक्षक नहीं, और मददगार भी नहीं। (113).

इस आयत में अत्याचारियों के प्रति झुकाव को लेकर एक रहस्य छिपा है। और वह है! अल्लाह के नेक बंदे साधु संत कभी भी लोगों को इस तरह अपनी ओर आकर्षित नहीं करते, कि लोग उनके आसपास इकट्ठा हो जाएं। क्योंकि मुत्तकी (धर्मपरायणता) की परिभाषा है दुनिया की सभी बुराइयों से बचते हुए अच्छे कर्मों के साथ जीवन जीना है।

अब विचार करें! क्या लोगों से घिरे रहकर धर्मपरायणता का पालन किया जा सकता है? वास्तव में, यह उन क्रूर लोगों का काम है जो लोगों को शैतान के हवाले करके अपनी जीविका चलाते हैं।

अल्लाह ताला सभी मुसलमानों को संबोधित करते हुए बार-बार कहते हैं कि तुम्हारा रब एक है। हमारी आँखें उसे नहीं देख सकतीं। उसके साथ किसी को ना जोड़ें। उसी की पूजा करो। और खुदा से उम्मीद रखो, क्योंकि निराशा अविश्वास (कुफ्र) है। और अल्लाह के सिवा कोई संत तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता या तुम्हारे लिए सिफ़ारिश नहीं कर सकता। हां, लेकिन अल्लाह तआला अपने किस बंदे की सिफ़ारिश कबूल करेगा। और वह किस बन्दे के लिये सिफ़ारिश स्वीकार करेगा। यह ज्ञान केवल ईश्वर का है।

اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ؕ وَعَلَى اللّٰهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ الۡمُؤۡمِنُوۡنَ‏ ﴿۱۳﴾۔

[Q-64:13]

खुदा के अतिरिक्त दूसरा कोई पूज्य नहीं। और ईमानवालों को अपना भरोसा सिर्फ खुदा पर रखना चाहिए। (13)

فَتَعٰلَى اللّٰهُ الۡمَلِكُ الۡحَـقُّ‌ ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ رَبُّ الۡعَرۡشِ الۡـكَرِيۡمِ‏ ﴿۱۱۶﴾۔

[Q-23:116]

ईश्वर ही उच्च पद का सच्चा राजा है। उसके अलावा कोई पूज्य नहीं, वह सिंहासन का स्वामी है (116)।

اِنَّ الَّذِيۡنَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ بِالۡغَيۡبِ لَهُمۡ مَّغۡفِرَةٌ وَّاَجۡرٌ كَبِيۡرٌ‏ ﴿۱۲﴾۔ 

[Q-67:12]

निस्संदेह, जो लोग बिना देखे अपने रब से डरते हैं, उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिफल है। (12)

وَمِنَ النَّاسِ مَنۡ يَّتَّخِذُ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ اَنۡدَادًا يُّحِبُّوۡنَهُمۡ كَحُبِّ اللّٰهِؕ وَالَّذِيۡنَ اٰمَنُوۡٓا اَشَدُّ حُبًّا لِّلّٰهِ﯀ وَلَوۡ يَرَى الَّذِيۡنَ ظَلَمُوۡٓا اِذۡ يَرَوۡنَ الۡعَذَابَ ۙ اَنَّ الۡقُوَّةَ لِلّٰهِ جَمِيۡعًا ۙ وَّاَنَّ اللّٰهَ شَدِيۡدُ الۡعَذَابِ‏ ﴿۱۶۵﴾۔  

[Q-02:165]

और लोगों में ऐसे लोग भी हैं जो अल्लाह को छोड़कर उसके साझीदार बना लेते हैं। वे उनसे वैसे ही प्रेम करते हैं जैसे उन्हें अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। लेकिन जो लोग विश्वास करते हैं, वे अल्लाह के प्यार में मजबूत होते हैं। और जिन लोगों ने कुफ़्र किया है, जब वे यातना देखेंगे तो जान लेंगे कि सारी शक्ति अल्लाह ही की है, और अल्लाह कठोर दण्ड देने वाला है। (165)

اَللّٰهُ الَّذِىۡ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا فِىۡ سِتَّةِ اَيَّامٍ ثُمَّ اسۡتَوٰى عَلَى الۡعَرۡشِ‌ؕ مَا لَكُمۡ مِّنۡ دُوۡنِهٖ مِنۡ وَّلِىٍّ وَّلَا شَفِيۡعٍ‌ؕ اَفَلَا تَتَذَكَّرُوۡنَ‏ ﴿۴﴾۔

[Q-32:04]

वह ईश्वर ही है जिसने छह दिनों में आकाश और पृथ्वी और उनके बीच जो कुछ है, उसकी रचना की, फिर वह सिंहासन पर विराजमान हुआ। (अल्लाह फ़रमाता है) मेरे सिवा तुम्हारा कोई संरक्षक या सिफ़ारिश करने वाला नहीं। तो फिर आप सलाह क्यों नहीं मानते? (4)

وَمَا يُؤۡمِنُ اَكۡثَرُهُمۡ بِاللّٰهِ اِلَّا وَهُمۡ مُّشۡرِكُوۡنَ‏ ﴿۱۰۶﴾۔

[Q-12:106]

और वे अक्सर ईश्वर पर विश्वास नहीं करते। लेकिन (इस तरह से) कि वे शिर्क पर प्रतिबद्ध हैं।(106).

وَيَعۡبُدُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مَا لَا يَضُرُّهُمۡ وَلَا يَنۡفَعُهُمۡ وَيَقُوۡلُوۡنَ هٰٓؤُلَاۤءِ شُفَعَآؤُنَا عِنۡدَ اللّٰهِ‌ؕ قُلۡ اَتُـنَـبِّـــُٔوۡنَ اللّٰهَ بِمَا لَا يَعۡلَمُ فِى السَّمٰوٰتِ وَلَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ سُبۡحٰنَهٗ وَتَعٰلٰى عَمَّا يُشۡرِكُوۡنَ‏ ﴿۱۸﴾۔

[Q-10:18]

और वे परमेश्वर को छोड़कर अन्य की पूजा करते हैं। जिससे उन्हें न तो कोई नुकसान होता है और न ही कोई फायदा मिलता है। और वे कहते हैं, कि ये परमेश्वर से हमारे मध्यस्थ हैं। कहो, क्या तुम ईश्वर को सूचित करते हो, कि वह धरती और आकाश का ज्ञान नहीं रखता? वह उस शिर्क (बहुदेववादी परंपरा) से पवित्र और श्रेष्ठ है। जो ये लोग करते हैं।  (18).

कुछ लोग कहते हैं कि हम साधु-संतों या दरगाहों पर जाते हैं। लेकिन हम शिर्क नहीं करते। यहां एक बात तो साफ है कि वहां कुछ तो जरूर होगा? जो आपको वहां खींच ले जाता है। कोई ऐसी इच्छा या आशा जिसकी आप ईश्वर से अपेक्षा न करते हों। विचार करना! क्या यह शिर्क नहीं है?

इन आयतों में उनके लिए रोशनी है। अगर वे समझना चाहते हैं।

وَيَوۡمَ نَحۡشُرُهُمۡ جَمِيۡعًا ثُمَّ نَقُوۡلُ لِلَّذِيۡنَ اَشۡرَكُوۡۤا اَيۡنَ شُرَكَآؤُكُمُ الَّذِيۡنَ كُنۡتُمۡ تَزۡعُمُوۡنَ‏ ﴿۲۲﴾  ثُمَّ لَمۡ تَكُنۡ فِتۡـنَـتُهُمۡ اِلَّاۤ اَنۡ قَالُوۡا وَاللّٰهِ رَبِّنَا مَا كُنَّا مُشۡرِكِيۡنَ‏ ﴿۲۳﴾  اُنْظُرۡ كَيۡفَ كَذَبُوۡا عَلٰٓى اَنۡفُسِهِمۡ‌ وَضَلَّ عَنۡهُمۡ مَّا كَانُوۡا يَفۡتَرُوۡنَ‏ ﴿۲۴﴾۔

[Q-06:22-23]

और जिस दिन हम उन सभी (मुसलमानों) को इकट्ठा करेंगे। जिन लोगों ने शिर्क किया। उनसे पूछेंगे? वे मित्र कहाँ हैं जिनसे तुम्हें अपेक्षा (उम्मीद) थी? (22) फिर उनके लिए कोई धोखा नहीं बचेगा। लेकिन वे कहेंगे! ऐ हमारे रब, हम मुश्रिकों में से नहीं थे। (23) देखो उन्होंने अपने आप से कैसे झूठ बोला। और जो कुछ उन्होंने बनाया था वह नष्ट हो गया। (24).

وَمَنۡ يَّدۡعُ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَۙ لَا بُرۡهَانَ لَهٗ بِهٖۙ فَاِنَّمَا حِسَابُهٗ عِنۡدَ رَبِّهٖؕ اِنَّهٗ لَا يُفۡلِحُ الۡـكٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۱۱۷﴾۔

[Q-23:117]

और जो लोग अल्लाह के साथ दूसरे देवताओं को भी बुलाते हैं, जिनका उनके पास कोई प्रमाण भी नहीं है। तो उनका हिसाब उनके रब के पास होगा। निश्चय ही ये अविश्वासी सफल नहीं होंगे। (117).


भटके हुए लोगों के लिए मकड़ी का दृष्टांत।

गुमराह लोगों को समझाने के लिए खुदा एक उदाहरण देते हैं। कि गुमराह लोग जाने-अनजाने में शिर्क करते हैं लेकिन अपने मन में खुद को ईमान वाला समझते हैं। क्योंकि शैतान उनके कामों को सुन्दर बनाकर दिखाता है। और ये हालात मकड़ियों के कमजोर घर (जाले) की तरह हैं।

مَثَلُ الَّذِيۡنَ اتَّخَذُوۡا مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ اَوۡلِيَآءَ كَمَثَلِ الۡعَنۡكَبُوۡتِ ‌ۖۚ اِتَّخَذَتۡ بَيۡتًا ‌ؕ وَ اِنَّ اَوۡهَنَ الۡبُيُوۡتِ لَبَيۡتُ الۡعَنۡكَبُوۡتِ‌ۘ لَوۡ كَانُوۡا يَعۡلَمُوۡنَ‏ ﴿۴۱﴾  اِنَّ اللّٰهَ يَعۡلَمُ مَا يَدۡعُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِهٖ مِنۡ شَىۡءٍ‌ؕ وَهُوَ الۡعَزِيۡزُ الۡحَكِيۡمُ‏ ﴿۴۲﴾  وَتِلۡكَ الۡاَمۡثَالُ نَضۡرِبُهَا لِلنَّاسِ‌ۚ وَمَا يَعۡقِلُهَاۤ اِلَّا الۡعٰلِمُوۡنَ‏ ﴿۴۳﴾۔

[Q-29:41-43]

अल्लाह एक उदाहरण देता है। जिन लोगों ने ईश्वर को छोड़कर अन्य लोगों को मित्र बना लिया है। उनका उदाहरण मकड़ी द्वारा बनाये गये घर जैसा है। सचमुच, अगर वे जानते तो सबसे कमज़ोर घर मकड़ी का घर होता है। (41) निश्चय ही, ईश्वर जानता है उनके विषय में, जिसे वे ईश्वर के अतिरिक्त पुकारते हैं। और ईश्वर शक्तिशाली और बुद्धिमान है। (42) और ये वे उदाहरण हैं जो हम लोगों के सामने पेश करते हैं और इनका ज्ञान के स्रोत के अलावा कोई मतलब नहीं है। यानी ये वो मिसालें हैं जो हम लोगों के समझने के लिए पेश करते हैं और इन्हें इल्म वालों के अलावा कोई नहीं समझ सकता (43)


साधु, अथवा वली की सिफारिश या हिमायत।

कुछ लोग सोचते हैं, कि ये साधु संत (पीर, औलिया) आख़िरत में अल्लाह तआला से उनकी सिफ़ारिश करेंगे। बल्कि अक्सर यह देखा जाता है कि झूठे साधु संत स्वयं आश्वासन देते हैं कि आख़िरत में वे अपने अनुयायी / मुरीदों के लिए खुदा से सिफ़ारिश करेंगे। जबकि हकीकत तो यह है कि पैगम्बरों को भी यह अधिकार अपने आप में नहीं है। तो इन संतों की क्या मजाल?

وَيَعۡبُدُوۡنَ مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ مَا لَا يَضُرُّهُمۡ وَلَا يَنۡفَعُهُمۡ وَيَقُوۡلُوۡنَ هٰٓؤُلَاۤءِ شُفَعَآؤُنَا عِنۡدَ اللّٰهِ‌ؕ قُلۡ اَتُـنَـبِّـــُٔوۡنَ اللّٰهَ بِمَا لَا يَعۡلَمُ فِى السَّمٰوٰتِ وَلَا فِى الۡاَرۡضِ‌ؕ سُبۡحٰنَهٗ وَتَعٰلٰى عَمَّا يُشۡرِكُوۡنَ‏ ﴿۱۸﴾۔

[Q-10:18]

और वे परमेश्वर को छोड़कर अन्य की पूजा करते हैं। जिससे उन्हें न तो कोई नुकसान होता है और न ही कोई फायदा मिलता है। और वे कहते हैं, कि ये परमेश्वर से हमारे मध्यस्थ हैं। कहो, क्या तुम ईश्वर को सूचित करते हो, कि वह धरती और आकाश का ज्ञान नहीं रखता? वह उस शिर्क (बहुदेववादी परंपरा) से पवित्र और श्रेष्ठ है। जो ये लोग करते हैं. (18).

اَمِ اتَّخَذُوۡا مِنۡ دُوۡنِ اللّٰهِ شُفَعَآءَ‌ ؕ قُلۡ اَوَلَوۡ كَانُوۡا لَا يَمۡلِكُوۡنَ شَيۡـًٔـا وَّلَا يَعۡقِلُوۡنَ‏ ﴿۴۳﴾۔

[Q-39:43]

क्या उन्होंने अल्लाह के सिवा और सिफ़ारिशी बना लिए हैं? कहो, भले ही उनके पास न तो अधिकार हो और न ही बुद्धि? (43).

وَاتَّقُوۡا يَوۡمًا لَّا تَجۡزِىۡ نَفۡسٌ عَنۡ نَّفۡسٍ شَيۡـًٔـا وَّلَا يُقۡبَلُ مِنۡهَا عَدۡلٌ وَّلَا تَنۡفَعُهَا شَفَاعَةٌ وَّلَا هُمۡ يُنۡصَرُوۡنَ‏ ﴿۱۲۳﴾۔

[Q-02:123]

और उस दिन से डरो जब कोई आत्मा किसी आत्मा को बदला न देगी। और उससे कोई मुआवज़ा स्वीकार नहीं किया जाएगा। और किसी सिफ़ारिश से उसे फ़ायदा नहीं होगा। और उन्हें कोई मदद भी नहीं मिल पायेगी। (123).

وَلَقَدۡ جِئۡتُمُوۡنَا فُرَادٰى كَمَا خَلَقۡنٰكُمۡ اَوَّلَ مَرَّةٍ وَّتَرَكۡتُمۡ مَّا خَوَّلۡنٰكُمۡ وَرَآءَ ظُهُوۡرِكُمۡ‌ۚ وَمَا نَرٰى مَعَكُمۡ شُفَعَآءَكُمُ الَّذِيۡنَ زَعَمۡتُمۡ اَنَّهُمۡ فِيۡكُمۡ شُرَكٰٓؤُا‌ ؕ لَقَدْ تَّقَطَّعَ بَيۡنَكُمۡ وَضَلَّ عَنۡكُمۡ مَّا كُنۡتُمۡ تَزۡعُمُوۡنَ﴿۹۴﴾۔

[Q-06:94]

और तुम हमारे पास अकेले आये हो जैसे हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। और जो कुछ हमने तुम्हें दिया था उसे तुम छोड़ आये हो और हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिशियों को नहीं देखते हैं। जिनके लिए तुमने दावा किया था। कि वे आपके बीच भागीदार हैं। वास्तव में, वे तुम्हारे बीच से अलग हो गए हैं। और तुम्हारा वह भ्रम और सन्देह नष्ट हो गया जिसके विषय में तुम सोचते थे। (94).


शिर्क / अविश्वास के अंधेरे में कुरान की रोशनी।

अल्लाह सर्वशक्तिमान कुरान को एक प्रकाश कहता है जिसका अस्तित्व मनुष्य का मार्गदर्शन करता है और उसे सच्चाई का मार्ग दिखाता है। अविश्वास (कुफ्र) और शिर्क से बचाता है। यह सांसारिक जीवन और परलोक में घर के निर्माण के लिए सामग्री प्रदान करता है। भूत और भविष्य के ज्ञान का वह स्रोत जिसका कोई विकल्प नहीं है।

وَلٰـكِنۡ جَعَلۡنٰهُ نُوۡرًا نَّهۡدِىۡ بِهٖ مَنۡ نَّشَآءُ مِنۡ عِبَادِنَا‌ ؕ وَاِنَّكَ لَتَهۡدِىۡۤ اِلٰى صِرَاطٍ مُّسۡتَقِيۡمٍۙ‏ ﴿۵۲﴾۔

[Q-42:52]

लेकिन हमने इस किताब को एक प्रकाश बना दिया है, जिसके द्वारा हम अपने बंदों में से जिसे चाहते हैं उसका मार्गदर्शन करते हैं, और वास्तव में (हे मुहम्मद) आप सीधे रास्ते पर मार्गदर्शन करते हैं। (52).

هٰذَا بَصَاٮِٕرُ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَّرَحۡمَةٌ لِّقَوۡمٍ يُّوۡقِنُوۡنَ‏ ﴿۲۰﴾۔

[Q-45:20]

ये (कुरान की आयतें) लोगों के लिए एक दर्शन हैं, और उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दया हैं जो इन पर विश्वास करते हैं। (20).

اِتَّبِعُوۡا مَاۤ اُنۡزِلَ اِلَيۡكُمۡ مِّنۡ رَّبِّكُمۡ وَلَا تَتَّبِعُوۡا مِنۡ دُوۡنِهٖۤ اَوۡلِيَآءَ‌ ؕ قَلِيۡلًا مَّا تَذَكَّرُوۡنَ ﴿۳﴾۔

[Q-07:03]

उस (पुस्तक) का अनुसरण करो जो तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुई है और ईश्वर के अतिरिक्त अन्य सन्तों का अनुसरण न करो। मार्गदर्शन प्राप्त करने वाले बहुत कम लोग होते हैं।(3)

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