पूर्वजों का धर्म

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“क़ुरान →हिदायत →ईश्वर का मार्गदर्शन” अध्याय में प्रश्न संख्या 2- यदि स्वयं ईश्वर ने हमारा या हमारे पूर्वजों का मार्गदर्शन नहीं किया और हम अपने पूर्वजों के बताए रास्ते पर चल रहे हैं, तो इसमें हमारा क्या दोष है?

प्रश्न संख्या 2 के उत्तर में अल्लाह कहता है कि।

“और वे कहते हैं, यदि परमेश्वर चाहता तो हम इन देवताओं की पूजा न करते। [अल्लाह पूछता है कि] क्या हमने उन्हें या उनके पूर्वजों को कुरान से पहले किसी पवित्र पुस्तक में अल्लाह के साथ साझीदार बनाने का आदेश दिया था, जिससे वे इस कुरीति को प्रमाणित करते हैं? [अल्लाह उत्तर भी देता है]। इन्हें इसका ज्ञान नहीं है। ये सिर्फ अनुमान लगा रहे हैं, बल्कि ये कहने लगते हैं कि हमने अपने पूर्वजों को एक रास्ते पर पाया है और हम उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं”। (कुरान-43:20-22)।

“वास्तव में, इसी तरह के सवाल उनके अगले पूर्वजों ने भी पूछे थे। जबकि पैगंबर उनके पास अल्लाह का संदेश लेकर आए थे। अल्लाह फरमाता है: हमने हर कौम (राष्ट्र) में पैगम्बर भेजे और पैगम्बरों ने खुदा की इबादत यानी एकेश्वरवाद का पैगाम दिया। और         मूर्तिपूजा से रोका। तो उनमें से कुछ, जो अल्लाह की ओर फिरे, अल्लाह ने उन्हें हिदायत दी। नहीं तो ज्यादातर लोग गुमराही पर बने रहे”। (कुरान- 16:35-36)।

और क़यामत के दिन, जब काफ़िर कहेंगे! कि हम न जानते थे, नहीं तो हम तेरी ही पूजा करते। ईश्वर कहेगा! क्या हमने तुम्हारे पास या तुम्हारे पूर्वजों के पास रसूल नहीं भेजे? परन्तु तूमने उन्हें झूठा और पागल कहा। और कहा कि हमने अपने पूर्वजोंको एक रास्ते पर पाया है और हम उनके पदचिन्हों पर चल रहे हैं। और हम उस धर्म को नहीं मानते जो तुम्हारे पास भेजा गया है, इसलिए अब तुम्हारा पूरा दंड नरक है।

“क्योंकि शैतान हमारे बुरे कामों को सुन्दर बनाकर दर्शाता है। और हम अल्लाह की राह छोड़कर शैतान को अपना दोस्त बना लेते हैं”। (कुरान-43:37)।

प्रत्येक मनुष्य जनता है कि! कि थोड़ी कठिनाई होगी, पर सत्य का मार्ग शाश्वत है। लेकिन फिर भी मनुष्य स्वाभाविक रूप से बुराई का छोटा और आसान रास्ता अपना लेता है। उसके बाद हमारी आने वाली पीढ़ियां इसी आसान रास्ते को चुनती चली जाती हैं, जैसा कि हम अपने पूर्वजों के मार्ग पर चलते रहे हैं। और एक समय ऐसा आता है जब हम सही और गलत के बारे में नहीं सोचना चाहते, हम सिर्फ “लकीर के फकीर” की तरह अपने पूर्वजों के बताए रास्ते पर चलते हैं। और इस सोच को मजबूत करने के लिए हमारे पास समाज में ताकतवर लोगों और कम ज्ञानी पुजारियों के रूप में शैतान उपस्थित रहते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि कौन सा धर्म सही है और कौन सा ग़लत?

        संसार के तीन बड़े धर्मों को समझने कि कोशिश करते हैं।

सनातन अथवा हिन्दू और उनके पूर्वज।

इंडिया में आर्य सिंधु कि और से आए थे। आदिकाल से यह रास्ता फारस, मिश्र व येरूशलम को जोड़ता आया है। आर्य वैद अपने साथ लाए थे। सनातन धर्म को मानने वाले थे। जिसको आज हिन्दू धर्म भी कहा जाता है। वैदों में निराकार एकेश्वर की शिक्षा दी गई है। तथा आज भी मूर्ति पूजा के संबन्ध में कहा जाता है कि मूर्तियाँ केवल मन एकाग्र करने के लिए होती हैं।

इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म में जल प्रलय का वर्णन मिलता है। जो नूह/मनु से जोड़ती है और वेद नूह/मनु को ईश्वर से मिली पांडुलिपियां प्रतीत होती हैं। यहाँ भी नबी या अवतार आए। जिन्हे बाद में ईश्वर या ईश्वर का रूप मान लिया गया।

ईसाई और उनके पूर्वज।

मत्ती कि इंजील [जो सबसे ज्यादा विश्वस्त और विख्यात है। एवमं ईसा मसीह के 12 शिष्यों में से एक हैं। और माना जाता है कि प्रत्येक समय ईसा मसीह के साथ रहे] में ईसा मसीह ने कहीं नहीं कहा कि वह स्वंम ईश्वर या ईश्वर की संतान हैं। 315 ई० में यह विचार वजूद में आया। हाँ! क्योंकि ईश्वर पालक है इस भावना अनुसार शिष्यों ने ईसा मसीह को परमेश्वर का पुत्र कहा (मत्ती कि इंजील 16:16) और स्वंम ईसा मसीह ने संसार के सारे मानवों को परमेश्वर का पुत्र कहा (मत्ती कि इंजील 5:16, 6:01, 7:11, 10:29)। तथा आनुवंशिक आधार पर ईसा मसीह ने स्वंम को आदम का पुत्र (मत्ती कि इंजील 9:6, 8:20, 12:8, 16:13) और ज़माने ने दाऊद का पुत्र कहा (मत्ती कि इंजील  9:27, 10:23, 15:22, 20:31)।

बाइबिल के पुराने साहित्य एवमं कुरान के अनुसार जल प्रलय के बाद जब अधर्म बहुत बढ़ गया, तब ईश्वर ने ह० इब्राहीम (अ०स०) और उनकी औलादों को लोगों तक अपना संदेश पहुँचाने के लिए चुना। यहाँ तक कि चारों पवित्र पुस्तकें (कुरान, इंजील, तौरेत, और ज़बूर) और अनगिनत पांडुलिपियां ह० इब्राहीम (अ०स०) और उनकी औलादों पर नाज़िल हुए।

कुरान में ईश्वर कहता  है। कि “हमने हर राष्ट्र में भविष्यद्वक्ताओं (नबी) को भेजा।” इब्राहीम और उसके वंशजों को अपने स्वयं के राष्ट्र के मार्गदर्शन के लिए भविष्यद्वक्ता (नबी) बनाया गया था और इनमे से अन्य राष्ट्रों के मार्गदर्शन के लिए भी भेजा गया था। उदाहरणत: यूसुफ (अ० स०) व मुहम्मद (स०)।

ईश्वर ने ह० इब्राहीम अ० स० के समय में ही उनकी औलादों का पलायन प्रारंभ कर दिया था। उदाहरणत: ह० इस्हाक़ कनान में थे तो ह० इस्माइल मक्का में पलायन कर चुके थे। इसी तरह हर पीढ़ी में पलायन कि परंपरा कायम रही। अथार्थ अधिकतम नबी ह० इब्राहीम अ० स० कि संतानों में ही हुए।

तात्पर्य यह है कि प्रत्येक नबी या दूत ने एकेश्वर यानि एक ही धर्म का मार्ग दिखाया। और लोगों ने उनके जाने के बाद उन्हे ही ईश्वर मान लिया।

इसका मुख्य कारण यह रहा कि ईश्वर ने नबियों के माध्यम से जो पवित्र पुस्तकें या पांडुलिपि लोगों को दिये, राजनीतिज्ञों और धर्म के ठेकेदारों ने उनमे मिलावट कर दी। या उनको छोड़कर दूसरी मानव रचित पुस्तकें ले आये। परिणाम स्वरूप पीढ़ी दर पीढ़ी अपने पूर्वजों के पथ पर चलते हुए हमने अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया।

मुस्लिम और उनके पूर्वज।

मुस्लिमों कि बात करें तो!

  • अल्लाह ने कुरान में कुरान को अति उत्कृष्ट (बेहतरीन) हदीस घोषित किया है। तथा यह हदीस अथार्थ कुरान स्वंम अल्लाह के रसूल मोहम्मद (स०अ०व०) ने वहयी के अनुसार लिखवाई।
  • इस हदीस को ह० उमर रज़ी० ने एकत्रित कर किताब का आकार दिया।
  • इस हदीस कि सुरक्षा का जिम्मा स्वंम अल्लाह ने लिया।
  • इस हदीस पर स्वंम रसूल ने अपनी ज़िंदगी गुजारी।
  • इस हदीस को अल्लाह तआला इस कायनात के पूर्ण ज्ञान का श्रोत घोषित करता है।

अब आप बतायें? कि इस् हदीस को पढ़ने और मानने वाले कितने प्रतिशत मुस्लिम जानते हैं कि इस हदीस में क्या लिखा है?

मैं कहता हूँ अरबों को छोड़कर मुश्किल से 2%! या उससे भी कम।

उलमा जब तकरीर करते हैं गर्व के साथ मानव रचित हदीसों कि बात करते हैं। कुरान कि बात नहीं करते, अगर कुरान कि बात करते भी हैं तो मानव रचित हदीसों से आश्य लेते हैं। कैसा समय आ गया है कि कुरान को मानव रचित हदीसों का मोहताज बना दिया गया है। जबकि अल्लाह तआला फरमाता है कि “हमने कुरान को तुम्हारे लिए सरल बनाया है ताकि तुम समझ सको। और हमने इसको समझाने के लिए तरह-तरह से बयान किया है”।

प्रत्येक मुस्लिम (जो थोड़ी समझ रखता है) जनता है कि आज का मुस्लिम हिदायत (सत्य) के रास्ते पर नहीं है। दूसरों को इल्जाम देता है मगर स्वंम के गिरेबान में झाँककर नहीं देखता, कि क्या वह स्वंम कुरान का अनुसरण कर रहा है?

में आप से पूछता हूँ कि कुरान का अनुसरण करना तो दूर कि बात है! क्या आपको ज्ञात है! कि कुरान में मुस्लिमों के लिए इस दुनिया में रहने के क्या नियम हैं?

  • परिवार में औलाद व पत्नी के क्या हकूक़ (अधिकार) हैं?
  • माँ बाप के क्या हकूक़ (अधिकार) हैं?
  • रिश्तेदारों, पड़ोसियों और ग़रीबों के क्या हकूक़ (अधिकार) हैं?
  • विरासत में कौन कितना हक़ (अधिकार) रखता है।?
  • तोलने और मापने के क्या नियम हैं?
  • जुर्म करने की सज़ायें क्या हैं?
  • मुस्लिम की पहचान क्या है?
  • एक मुस्लिम कैसे जान सकता है कि वह मुस्लिम है भी या नहीं?
  • एक मुस्लिम को मुस्लिम बनने के लिए पहले नैतिकता सीखनी चाहिए या इबादत?
  • क्या सिर्फ इबादत से मुस्लिम बना जा सकता है?

खुदा कि क़सम! स्वंम से प्रश्न करोगे तो जवाब न मिलेगा। 

अल्लाह तआला ने ह० मूसा (अ०स०) कि उम्मत के लिए तौरैत, ह० दाऊद (अ०स०) कि उम्मत के लिए ज़बूर, ह० ईसा (अ०स०) कि उम्मत के लिए इंजील और उममते मोहम्मदिया के लिए क़ुरान नाज़िल किया। लेकिन जब-जब क़ौमों ने मूल पुस्तक को छोड़कर मानव रचित पुस्तकों से स्नेह (दिलचस्पी) बढ़ाया! तब-तब उन्होंने अपने दीन धर्म को भ्रष्ट कर लिया। और अल्लाह ने नाराज़ होकर उन्हे अज़ाब में पकड़ लिया।

अदालत के दिन जब ये स्वंम को मुस्लिम कहने वाले लोग रसूल की सिफारिश की उम्मीद लगाए होंगें, तब रसूल मोहम्मद (स०अ०व०) कहेंगे! “या रब इन्होंने कुरान को छोड़ दिया था”। (अथार्थ यह मेरी उम्मत नहीं)।

अब आप बतायें?

  • क्या आज की मुस्लिम क़ौम अपने पूर्वजों के ग़लत रास्तों का अनुसरण कर रही है या नहीं?
  • क्या हम 1450 साल पुराने उस जाहिल समय में नहीं हैं?
  • क्या हम वो पुरानी क़ौमें नहीं बन गये हैं कि जिन पर अल्लाह ने अज़ाब भेजे?
  • क्या हम भी उन्ही अज़ाब के मुस्तहिक (योग्य) नहीं हैं?
  • क्या संसार में मुस्लिमों पर होने वाले ज़ुल्म उन आज़ाबों की याद ताज़ा नहीं करते?
  • सोचें

 

जबकि अल्लाह तआला उन लोगों से प्यार करता है ……….

“जो सत्य को जानने और खोजने की कोशिश करते हैं और अल्लाह की ओर मुड़ते हैं”। (कुरान-29:69 और 40:13) ।

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رَّبِّ اَعُوۡذُ بِکَ مِنۡ ھَمَزٰتِ الشَّیٰطِیۡنِ ۙ وَاَعُوۡذُ بِکَ رَبِّ اَنۡ یَّحۡضُرُوۡن ؕ۔

بِسۡمِ اللّٰهِ الرَّحۡمٰنِ الرَّحِيۡمِۙ۔

पूर्वजों  का धर्म।

وَاِذَا قِيۡلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡا اِلٰى مَاۤ اَنۡزَلَ اللّٰهُ وَاِلَى الرَّسُوۡلِ قَالُوۡا حَسۡبُنَا مَا وَجَدۡنَا عَلَيۡهِ اٰبَآءَنَا‌ ؕ اَوَلَوۡ كَانَ اٰبَآؤُهُمۡ لَا يَعۡلَمُوۡنَ شَيۡــًٔـا وَّلَا يَهۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۱۰۴﴾۔

[Q-05:104]

       और जब उनसे कहा जाता है कि जो (कुरान) अल्लाह ने उतारा है उसकी तथा रसूल की ओर (आओ), तो कहते हैं, हमें वही काफी है, जिसपर हमने अपने पूर्वजों को पाया है, भले ही उनके पूर्वज कुछ न जानते रहे हों और न संमार्ग पर रहे हों (तब भी वे उन्हीं के रास्ते पर चलेंगे)?


وَاِذَا قِيۡلَ لَهُمُ اتَّبِعُوۡا مَآ اَنۡزَلَ اللّٰهُ قَالُوۡا بَلۡ نَـتَّبِعُ مَآ اَلۡفَيۡنَا عَلَيۡهِ اٰبَآءَنَا ؕ اَوَلَوۡ كَانَ اٰبَآؤُهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ شَيۡـًٔـا وَّلَا يَهۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۱۷۰﴾ ۔

[Q-02:170]

और जब उनसे  कहा जाता है कि जो (क़ुर्आन) अल्लाह ने उतारा है, उसपर चलो, तो कहते हैं कि हम तो पूर्वजों के उस धर्म पर ही चलेंगे, कि जिस पर उन्हे पाया है। भले ही उनके पूर्वज कुछ न समझते हों और कुपथ पर रहे हों। (तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करते रहेंगे?) (170)

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काफिर और उनके अच्छे कर्म।

وَمَثَلُ الَّذِيۡنَ کَفَرُوۡا كَمَثَلِ الَّذِىۡ يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ اِلَّا دُعَآءً وَّنِدَآءً ؕ صُمٌّۢ بُكۡمٌ عُمۡـىٌ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُوۡنَ‏ ﴿۱۷۱﴾ ۔

[Q-02:171]

          उनकी दशा जो काफ़िर हो गये, उसके समान है, जो उसे (अर्थात पशु को) पुकारता है, जो हाँक-पुकार के सिवा कुछ नहीं सुनता। ये (काफ़िर) बहरे, गूंगे तथा अंधे हैं। इसलिए कुछ नहीं समझते।


وَالَّذِيۡنَ كَفَرُوۡۤا اَعۡمَالُهُمۡ كَسَرَابٍۢ بِقِيۡعَةٍ يَّحۡسَبُهُ الظَّمۡاٰنُ مَآءً ؕ حَتّٰۤى اِذَا جَآءَهٗ لَمۡ يَجِدۡهُ شَيۡــًٔـا وَّوَجَدَ اللّٰهَ عِنۡدَهٗ فَوَفّٰٮهُ حِسَابَهٗ‌ ؕ وَاللّٰهُ سَرِيۡعُ الۡحِسَابِ ۙ‏ ﴿۳۹﴾ ۔

[Q-24:39]

तथा जो काफ़िर (अविश्वासी) हो गये, उनके सु-कर्म उस चमकते सुराब (कड़ी गर्मी के समय रेगिस्तान में चमकती हुई रेत का पानी जैसा लगना) के समान हैं, जो किसी मैदान में हो, जिसे प्यासा पानी समझता हो। परन्तु, जब उसके पास आये, तो कुछ न पाये। और जो ईश्वर को पाये, तो ईश्वर उसका पूरा ह़िसाब चुका दे और ईश्वर (अल्लाह) शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।

[आयत का अर्थ यह है कि काफ़िरों के सु-कर्म अल्लाह (ईश्वर) पर ईमान न होने के कारण अल्लाह के समक्ष व्यर्थ हो जायेंगे।]


اَوۡ كَظُلُمٰتٍ فِىۡ بَحۡرٍ لُّـجّـِىٍّ يَّغۡشٰٮهُ مَوۡجٌ مِّنۡ فَوۡقِهٖ مَوۡجٌ مِّنۡ فَوۡقِهٖ سَحَابٌ‌ؕ ظُلُمٰتٌۢ بَعۡضُهَا فَوۡقَ بَعۡضٍؕ اِذَاۤ اَخۡرَجَ يَدَهٗ لَمۡ يَكَدۡ يَرٰٮهَا‌ؕ وَمَنۡ لَّمۡ يَجۡعَلِ اللّٰهُ لَهٗ نُوۡرًا فَمَا لَهٗ مِنۡ نُّوۡرٍ‏ ﴿۴۰﴾ ۔

[Q-24:40]

अथवा (काफ़िरों के सु-कर्मों का उदाहरण) उन अंधकारों के समान हैं, जो किसी गहरे सागर में हो और जिसपर तरंग छायी हो, फिर जिसके ऊपर और तरंग हो, उसके ऊपर बादल हो, अन्धकार पर अन्धकार हो, जब अपना हाथ निकाले, तो उसे भी न देख सके। और अल्लाह जिसे प्रकाश न दे, उसके लिए कोई प्रकाश नहीं।

[अर्थात काफ़िर, अविश्वास और कुकर्मों के अन्धकार में घिरा रहता है। और यह अन्धकार उसे मार्ग दर्शन की ओर नहीं आने देते।]


ذٰ لِكَ بِاَنَّ الَّذِيۡنَ كَفَرُوۡا اتَّبَعُوا الۡبَاطِلَ وَاَنَّ الَّذِيۡنَ اٰمَنُوا اتَّبَعُوا الۡحَقَّ مِنۡ رَّبِّهِمۡ‌ؕ كَذٰلِكَ يَضۡرِبُ اللّٰهُ لِلنَّاسِ اَمۡثَالَهُمۡ‏ ﴿۳﴾ ۔

[Q-47:03]

ये (काफ़िरों के सु-कर्मों का व्यर्थ होना) इस कारण है कि उन्होंने कुफ़्र (अविश्वास) किया और असत्य के मार्ग पर चले। तथा जो ईमान लाये (उनके सु-कर्मों का पूरा बदल मिलेगा क्योंकि) वे सत्य के मार्ग पर अपने पालनहार की ओर चले।  इस प्रकार, अल्लाह लोगों को उनकी सही दशायें बता देता है।

[अल्लाह सर्वशक्तिमान कहता है कि पुनरुत्थान (हिसाब) के दिन किसी के साथ अन्याय नहीं किया जाएगा। सभी को पूरा-पूरा बदला मिलेगा। अतः जब काफिरों (अविस्वासियों) की बारी आएगी, तो अल्लाह कहेगा। अपने उन साझीदारों को बुलाओ जिनकी तुम पूजा करते थे, ताकि वे तुम्हें तुम्हारे सु-कर्मों के लिए बदला दें। और साझीदार कहेंगे, हम उन्हें नहीं जानते। यानी नास्तिकों और काफिरों के सु-कर्मों का अल्लाह कैसे बदला दे सकता है जबकि वो अल्लाह पर ईमान ही न रखते थे और स्वंम पर तथा ईमान वालों पर ज़ुल्म करते रहे। तो अब तुम्हारी पूरी सज़ा जहन्नुम (नरक) है]

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क्या परमेश्वर कभी निर्लज्जा की आज्ञा दे सकता है?

وَاِذَا فَعَلُوۡا فَاحِشَةً قَالُوۡا وَجَدۡنَا عَلَيۡهَاۤ اٰبَآءَنَا وَاللّٰهُ اَمَرَنَا بِهَا‌ ؕ قُلۡ اِنَّ اللّٰهَ لَا يَاۡمُرُ بِالۡفَحۡشَآءِ‌ ؕ اَتَقُوۡلُوۡنَ عَلَى اللّٰهِ مَا لَا تَعۡلَمُوۡنَ‏ ﴿۲۸﴾ ۔

[Q-07:28]

तथा जब वे (मुश्रिक) जब कोई निर्लज्जा का काम करते हैं, तो कहते हैं कि हमने अपने पूर्वजों को इसी (रीति) पर पाया है तथा अल्लाह ने हमें इसका आदेश दिया है। (हे नबी!) आप उनसे कह दें कि अल्लाह कभी निर्लज्जा का आदेश नहीं देता। क्या तुम अल्लाह पर ऐसी बात का आरोप धरते हो, जिसे तुम नहीं जानते?

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काफिर और शैतान एक दूसरे के दोस्त हैं।

وَقَالُوۡا لَوۡ شَآءَ الرَّحۡمٰنُ مَا عَبَدۡنٰهُمۡ‌ؕ مَا لَهُمۡ بِذٰلِكَ مِنۡ عِلۡمٍ‌ اِنۡ هُمۡ اِلَّا يَخۡرُصُوۡنَؕ‏ ﴿۲۰﴾ اَمۡ اٰتَيۡنٰهُمۡ كِتٰبًا مِّنۡ قَبۡلِهٖ فَهُمۡ بِهٖ مُسۡتَمۡسِكُوۡنَ‏ ﴿۲۱﴾ بَلۡ قَالُـوۡۤا اِنَّا وَجَدۡنَاۤ اٰبَآءَنَا عَلٰٓى اُمَّةٍ وَّاِنَّا عَلٰٓى اٰثٰرِهِمۡ مُّهۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۲۲﴾ ۔

[Q-43:20-22]

तथा उन्होंने कहा कि यदि अत्यंत कृपाशील चाहता, तो हम उनकी इबादत नहीं करते। उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं। वह केवल तीर-तुक्के चला रहे हैं। क्या हमने उन्हें इस (कुरान) से पहले कोई ऐसी पवित्र पुस्तक प्रदान की है जिससे वे प्रमाण लेते हैं?

[अर्थात क़ुर्आन से पहले की किसी ईश-पुस्तक में अल्लाह के सिवा किसी और की उपासना की शिक्षा नहीं दी गई है कि वह कोई प्रमाण ला सकें।]

बल्कि, ये कहते हैं कि हमने अपने पूर्वजों को एक रीति पर पाया है और हम उन्हीं के पद्चिन्हों पर चल रहे हैं।


وَمَنۡ يَّعۡشُ عَنۡ ذِكۡرِ الرَّحۡمٰنِ نُقَيِّضۡ لَهٗ شَيۡطٰنًا فَهُوَ لَهٗ قَرِيۡنٌ‏ ﴿۳۶﴾ وَاِنَّهُمۡ لَيَصُدُّوۡنَهُمۡ عَنِ السَّبِيۡلِ وَيَحۡسَبُوۡنَ اَنَّهُمۡ مُّهۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۳۷﴾ حَتّٰٓى اِذَا جَآءَنَا قَالَ يٰلَيۡتَ بَيۡنِىۡ وَبَيۡنَكَ بُعۡدَ الۡمَشۡرِقَيۡنِ فَبِئۡسَ الۡقَرِيۡنُ‏ ﴿۳۸﴾ ۔

[Q-43:36-38]

और जो व्यक्ति अत्यंत कृपाशील (अल्लाह) के स्मरण से अंधा हो जाता है, तो हम उसपर एक शैतान नियुक्त कर देते हैं, जो उसका साथी हो जाता है। और वे (शैतान) उन्हें सीधी राह से रोकते हैं तथा वे समझते हैं कि वे सीधी राह पर हैं। यहाँ तक कि जब वह हमारे पास आयेगा, तो अपने शैतान से कहेगा कि काश मेरे तथा तेरे मध्य पूर्व तथा  पश्चिम की दूरी होती। तू बुरा साथी है।

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ईश्वर हर धर्म का लक्ष्य है।

وَلَٮِٕنۡ سَاَلۡتَهُمۡ مَّنۡ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضَ لَيَقُوۡلُنَّ خَلَقَهُنَّ الۡعَزِيۡزُ الۡعَلِيۡمُۙ‏ ﴿۹﴾ ۔

[Q-43:09]

और यदि आप उनसे प्रश्न करें कि आकाशों तथा धरती को किसने पैदा किया है? तो अवश्य कहेंगेः कि उन्हें बड़े प्रभावशाली, सब कुछ जानने वाले ईश्वर ने पैदा किया है।

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ईश्वर ने नबी भेजे। सद्मार्ग पाओ या पूर्वजों जैसा अंत।

تَاللّٰهِ لَـقَدۡ اَرۡسَلۡنَاۤ اِلٰٓى اُمَمٍ مِّنۡ قَبۡلِكَ فَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيۡطٰنُ اَعۡمَالَهُمۡ فَهُوَ وَلِيُّهُمُ الۡيَوۡمَ وَلَهُمۡ عَذَابٌ اَلِيۡمٌ‏ ﴿۶۳﴾ ۔

[Q-16:63]

अल्लाह फरमाता है! (हे नबी!) आपसे पहले हमने बहुत-से समुदायों की ओर रसूल भेजे (कि लोगों को एकेश्वर का पथ बताएं)। परंतु शैतान ने उनके कुकर्मों को सुसज्जित कर दिखाया। अतः आज भी वही उनका सहायक है और उनके लिए (प्रलय के पश्चात) भयंकर यातना है।


وَكَذٰلِكَ مَاۤ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ قَبۡلِكَ فِىۡ قَرۡيَةٍ مِّنۡ نَّذِيۡرٍ اِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوۡهَاۤ اِنَّا وَجَدۡنَاۤ اٰبَآءَنَا عَلٰٓى اُمَّةٍ وَّاِنَّا عَلٰٓى اٰثٰرِهِمۡ مُّقۡتَدُوۡنَ‏ ﴿۲۳﴾ قٰلَ اَوَلَوۡ جِئۡتُكُمۡ بِاَهۡدٰى مِمَّا وَجَدْتُّمۡ عَلَيۡهِ اٰبَآءَكُمۡ‌ ؕ قَالُوۡۤا اِنَّا بِمَاۤ اُرۡسِلۡـتُمۡ بِهٖ كٰفِرُوۡنَ‏ ﴿۲۴﴾ فَانْتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ‌ فَانْظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَاقِبَةُ الۡمُكَذِّبِيۡنَ‏ ﴿۲۵﴾ ۔

[Q-43:23-25]

तथा (हे नबी!) इसी प्रकार, आपसे पूर्व कोई ऐसी बस्ती नहीं कि जहां हमने कोई सावधान करने वाला नहीं भेजा हो, परन्तु वहाँ के सुखी लोगों ने कहा कि हमने अपने पूर्वजों को एक रीति पर पाया है और हम निश्चय ही उन्हीं के पद्चिन्हों पर चल रहे हैं।

[आयत का भावार्थ यह है कि प्रत्येक युग के काफ़िर अपने पूर्वजों के अनुसरण के कारण अपने शिर्क और अंधविश्वास पर स्थित रहे]

प्रत्येक  नबी ने कहाः यद्पि मैं तुम्हारे पास उससे अधिक सीधा मार्ग लाया हूँ, जिसपर तुमने अपने पूर्वजों को पाया है तो क्या तब भी तुम उन्ही का अनुसरण करोगे? तो उन्होंने कहाः जिस (धर्म) के साथ तुम भेजे गये हो, हम उसे मानने वाले नहीं है। अन्ततः, हमने उनसे बदला चुका लिया। तो देखो, कि झुठलाने वालों का दुष्परिणाम कैसा रहा।


وَكَمۡ اَرۡسَلۡنَا مِنۡ نَّبِىٍّ فِى الۡاَوَّلِيۡنَ‏ ﴿۶﴾ وَمَا يَاۡتِيۡهِمۡ مِّنۡ نَّبِىٍّ اِلَّا كَانُوۡا بِهٖ يَسۡتَهۡزِءُوۡنَ‏ ﴿۷﴾ فَاَهۡلَـكۡنَاۤ اَشَدَّ مِنۡهُمۡ بَطۡشًا وَّمَضٰى مَثَلُ الۡاَوَّلِيۡنَ‏ ﴿۸﴾ ۔

[Q-43:6-8]

तथा हमने पहली (गुज़री हुयी) जातियों में बहुत-से नबी भेजे हैं। और उनके पास ऐसा कोई नबी नहीं आया, कि जिसके साथ उन्होंने उपहास न किया हो। तो हमने इनमे अधिक शक्तिवानों का विनाश कर दिया। तथा अगलों का उदाहरण ग़ुज़र चुका।

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कुरान और काफिर के मध्य हिजाब।

وَاِذَا قَرَاۡتَ الۡقُرۡاٰنَ جَعَلۡنَا بَيۡنَكَ وَبَيۡنَ الَّذِيۡنَ لَا يُؤۡمِنُوۡنَ بِالۡاٰخِرَةِ حِجَابًا مَّسۡتُوۡرًا ۙ‏ ﴿۴۵﴾ وَّجَعَلۡنَا عَلٰى قُلُوۡبِهِمۡ اَكِنَّةً اَنۡ يَّفۡقَهُوۡهُ وَفِىۡۤ اٰذَانِهِمۡ وَقۡرًا‌ ؕ وَاِذَا ذَكَرۡتَ رَبَّكَ فِى الۡقُرۡاٰنِ وَحۡدَهٗ وَلَّوۡا عَلٰٓى اَدۡبَارِهِمۡ نُفُوۡرًا‏ ﴿۴۶﴾ ۔

[Q-17:45-46]

और जब आप क़ुर्आन पढ़ते हैं, तो हम आपके और उनके मध्य जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं लाते आवरण पर आवरण (पर्दे पर पर्दा) डाल देते हैं।

[अर्थात काफिरों की क़ुर्आन को समझने की योग्यता खो जाती है।]

तथा उनके दिलों पर ऐसे आवरण (पर्दे) डाल देते हैं कि वे क़ुर्आन को न समझें और उनके कानों में बोझ पैदा कर देते हैं। और जब आप अपने अकेले रब की चर्चा क़ुर्आन में करते हैं, तो वह घृणा से मुँह फेर कर चल देते हैं।

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अंतत: अल्लाह तआला निर्णय सुनाता है।

اَفَاَنۡتَ تُسۡمِعُ الصُّمَّ اَوۡ تَهۡدِى الۡعُمۡىَ وَمَنۡ كَانَ فِىۡ ضَلٰلٍ مُّبِيۡنٍ‏ ﴿۴۰﴾ فَاِمَّا نَذۡهَبَنَّ بِكَ فَاِنَّا مِنۡهُمۡ مُّنۡتَقِمُوۡنَۙ‏ ﴿۴۱﴾ اَوۡ نُرِيَنَّكَ الَّذِىۡ وَعَدۡنٰهُمۡ فَاِنَّا عَلَيۡهِمۡ مُّقۡتَدِرُوۡنَ‏ ﴿۴۲﴾ ۔

[Q-43:40-42]

तो (हे नबी!) क्या आप बहरों को सुना लोगे? या अंधों को अथवा उन्हें जो खुले कुपथ (गुमराही) में पड़े हों सीधी राह दिखा देंगे?

[अथार्थ जो सच्च को न सुने तथा दिल का अंधा हो तो आप ﷺ उसको सीधी राह नहीं दिखा सकते]

तो अब हम उनसे बदला लेने वाले हैं। फिर हम आपको (इस संसार से) ले जायें,  अथवा जिस (यातना या अज़ाब) का हमने उनको वचन दिया है आपको वह दिखा दें। निश्चय ही हम उनपर सामर्थ्य रखने वाले हैं।

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ईश्वर के गुण।

بَدِيۡعُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ‌ؕ اَنّٰى يَكُوۡنُ لَهٗ وَلَدٌ وَّلَمۡ تَكُنۡ لَّهٗ صَاحِبَةٌ‌ ؕ وَخَلَقَ كُلَّ شَىۡءٍ‌ ۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَىۡءٍ عَلِيۡمٌ‏ ﴿۱۰۱﴾ ذٰ لِكُمُ اللّٰهُ رَبُّكُمۡ‌ۚ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ‌ۚ خَالِقُ كُلِّ شَىۡءٍ فَاعۡبُدُوۡهُ ‌ۚ وَهُوَ عَلٰى كُلِّ شَىۡءٍ وَّكِيۡلٌ‏ ﴿۱۰۲﴾ لَا تُدۡرِكُهُ الۡاَبۡصَارُ ۚ وَهُوَ يُدۡرِكُ الۡاَبۡصَارَ‌ۚ وَهُوَ اللَّطِيۡفُ الۡخَبِيۡرُ‏ ﴿۱۰۳﴾ ۔

[Q-06:101-103]

वह आकाशों तथा धरती का अविष्कारक है, उसके संतान कहाँ से हो सकती हैं, जबकि उसकी पत्नी ही नहीं है? तथा उसीने प्रत्येक वस्तु को पैदा किया है और वह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानता है।

[ईश्वर कोई प्राणी नहीं जिसे संतान या पत्नी कि आवश्यकता होगी, वह प्रकाश रूपी एक शक्ति है]

यही (गुण रखने वाला) ईश्वर तुम्हारा पालनहार है, उसके अतिरिक्त कोई सच्चा पूज्य नहीं। वह प्रत्येक वस्तु का पैदा करने वाला (उत्पत्तिकार) है। अतः उसकी इबादत (वंदना) करो। तथा वही प्रत्येक चीज़ का अभिरक्षक है। (वह ऐसा है कि) आँखें उसको देख नहीं सकती, जबकी वह सब कुछ देख रहा है। वह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी और सब चीज़ों से अवगत है।

[अर्थात इस संसार में उसे कोई नहीं देख सकता।]


اَللّٰهُ نُوۡرُ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ ‌ؕ مَثَلُ نُوۡرِهٖ كَمِشۡكٰوةٍ فِيۡهَا مِصۡبَاحٌ‌ ؕ الۡمِصۡبَاحُ فِىۡ زُجَاجَةٍ‌ ؕ اَلزُّجَاجَةُ كَاَنَّهَا كَوۡكَبٌ دُرِّىٌّ يُّوۡقَدُ مِنۡ شَجَرَةٍ مُّبٰـرَكَةٍ زَيۡتُوۡنَةٍ لَّا شَرۡقِيَّةٍ وَّلَا غَرۡبِيَّةٍ ۙ يَّـكَادُ زَيۡتُهَا يُضِىۡٓءُ وَلَوۡ لَمۡ تَمۡسَسۡهُ نَارٌ‌ ؕ نُوۡرٌ عَلٰى نُوۡرٍ‌ ؕ يَهۡدِى اللّٰهُ لِنُوۡرِهٖ مَنۡ يَّشَآءُ‌ ؕ وَ يَضۡرِبُ اللّٰهُ الۡاَمۡثَالَ لِلنَّاسِ‌ؕ وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَىۡءٍ عَلِيۡمٌ ۙ‏ ﴿۳۵﴾  فِىۡ بُيُوۡتٍ اَذِنَ اللّٰهُ اَنۡ تُرۡفَعَ وَيُذۡكَرَ فِيۡهَا اسۡمُهٗۙ يُسَبِّحُ لَهٗ فِيۡهَا بِالۡغُدُوِّ وَالۡاٰصَالِۙ‏ ﴿۳۶﴾  رِجَالٌ ۙ لَّا تُلۡهِيۡهِمۡ تِجَارَةٌ وَّلَا بَيۡعٌ عَنۡ ذِكۡرِ اللّٰهِ وَاِقَامِ الصَّلٰوةِ وَ اِيۡتَآءِ الزَّكٰوةِ‌ ۙ يَخَافُوۡنَ يَوۡمًا تَتَقَلَّبُ فِيۡهِ الۡقُلُوۡبُ وَالۡاَبۡصَارُۙ‏ ﴿۳۷﴾۔

[Q-24:35-37]

अल्लाह आकाशों तथा धरती का प्रकाश है, उसके प्रकाश का उदाहरण ऐसा है, जैसे एक ताक़ (आला) हो, जिसमें दीप हो, दीप काँच के झूमर में हो, तथा झूमर जैसे चमकते हुए तारे के समान हो, वह ऐसे शुभ ज़ैतून के वृक्ष के तेल से जलाया जाता हो, जो न पूर्वी हो और न पश्चिमी, उसका तेल ऐसा पारदर्शी हो कि संभवत:! स्वयं प्रकाश देने लगे, यद्यपि आग उसे आग स्पर्श भी न करे। प्रकाश पर प्रकाश हो। अल्लाह जिसे चाहता है अपने प्रकाश का मार्ग दिखा देता है, और अल्लाह लोगों को समझाने हेतु उदाहरण दे रहा है और अल्लाह प्रत्येक वस्तु से भली-भाँति अवगत है। “35”

(ये प्रकाश) उन घरों अथार्थ मस्जिदों में है, जिन्हें अल्लाह ने ऊँचा करने और उनमें ऐसे लोगों को सुबह व शाम ईश्वर के नाम की महिमा (तसबीह) करने और उसकी चर्चा करने का आदेश दिया कि जिन्हे ईश्वर की चर्चा तथा नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने से! व्यापार तथा खरीद और बिक्री बेखबर नहीं करती। वे उस क़यामत के दिन से डरते हैं जिसमें दिल तथा आँखें उलट जायेँगी। “36-37”


رَّبُّ السَّمٰوٰتِ وَالۡاَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا فَاعۡبُدۡهُ وَاصۡطَبِرۡ لِـعِبَادَتِهٖ ‌ؕ هَلۡ تَعۡلَمُ لَهٗ سَمِيًّا‏ ﴿۶۵﴾ ۔

[Q-19:65]

वो रब है! आकाशों तथा धरती का और उन सारी चीजों का जो आसमानों और जमीन के बीच है। अतः उसी की इबादत (वंदना) करो तथा उसकी इबादत पर स्थित रहो। क्या आपके ज्ञान में कोई सत्ता है जो उसके बराबर है? [बिल्कुल नहीं]


لَا تَجۡعَلۡ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَ فَتَقۡعُدَ مَذۡمُوۡمًا مَّخۡذُوۡلًا‏ ﴿۲۲﴾ ۔

[Q-17:22]

(हे मानव!) ईश्वर के साथ कोई दूसरा पूज्य न बना, अन्यथा ज़लील और असहाय होकर रह जायेगा।

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ईश्वर ने स्वंम को प्रकट करने के लिए पवित्र पुस्तकें भेजीं।

وَلَقَدۡ اٰتَيۡنَا مُوۡسَى الۡهُدٰى وَاَوۡرَثۡنَا بَنِىۡۤ اِسۡرَآءِيۡلَ الۡكِتٰبَۙ‏ ﴿۵۳﴾ هُدًى وَّذِكۡرٰى لِاُولِى الۡاَلۡبَابِ‏ ﴿۵۴﴾ ۔

[Q-40:53-54]

तथा हमने मूसा को मार्गदर्शन की किताब प्रदान की। और हमने इस्राईल की संतान को उस पुस्तक (तौरात) का उत्तराघिकारी बनाया। जो समझ रखने वालों के लिए मार्गदर्शन तथा शिक्षा है।


وَالۡكِتٰبِ الۡمُبِيۡنِ ﴿۲﴾ اِنَّا جَعَلۡنٰهُ قُرۡءٰنًا عَرَبِيًّا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُوۡنَ‌ۚ‏ ﴿۳﴾ وَاِنَّهٗ فِىۡۤ اُمِّ الۡكِتٰبِ لَدَيۡنَا لَعَلِىٌّ حَكِيۡمٌؕ‏ ﴿۴﴾ ۔

[Q-43:2-4]

शपथ है प्रत्यक्ष (खुली) पुस्तक की।  कि इसे हमने अरबी भाषा का क़ुर्आन बनाया है, ताकि तुम इसे समझ सको। तथा वह मूल पुस्तक में सुरक्षित है। जो हमारे पास, निश्चय ही उच्च तथा ज्ञान से परिपूर्ण पुस्तक है।

[मूल पुस्तक से अभिप्राय लौह़े मह़फ़ूज़ (सुरक्षित पुस्तक) है। जिस से सभी आकाशीय पुस्तकें अलग कर के अवतरित की गई हैं। सूरह वाक़िआ में इसी को “किताबे मक्नून” कहा गया है। सूरह बुरूज में इसे “लौह़े मह़फ़ूज़” कहा गया है]।

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